Aug 11, 2011

पुस्तिका बाँट फारिग हुए

एक आयोजन कर दलित मुद्दे पर स्टैंड लिया और सार्वजनिक पुस्तक वितरण किया. अब उस पर सवाल उठ रहे हैं तो उनका जवाब क्यों नहीं दे रहे? मुद्दा सार्वजनिक है तो उसका जवाब सार्वजनिक रूप से देना चाहिए...

राम प्रकाश अनंत

अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के चलते और मेरे मोबाइल पर google doc के न खुल पाने के कारण मैं क्रालोस द्वारा प्रकाशित पुस्तिका नहीं पढ़ पाया हूँ, जल्दी ही पढ़ने की कोशिश करूँगा.जनज्वार ने अच्छी बहस शुरू की है. फ़िलहाल मैं सुधीर के लेख 'प्रयोगशाला के क्रांतिवीरो को आरक्षण लगे रोड़ा' पर अपनी कुछ राय रखना चाहता हूँ.

सुधीर का कहना है कि पुस्तिका की 90%बातें सामान्य मार्क्सवादी बातें हैं जिन्हें हर बुद्धिजीवी जानता समझता है. शेष अहमक गाली गलौज जो हर हारा बुद्धिजीवी करता है'.इस पुस्तिका की क्या, मार्क्सवाद पर आज जो तमाम बातें होती हैं उन्हें बुद्धिजीवी जानते समझते हैं फिर भी हमेशा से ये बातें होती रही हैं और आगे होती रहेंगी . 90%बातें सामान्य मार्क्सवादी बातें हैं और आप मार्क्सवाद को मानते हैं तो वे सही ही होंगी.

दलितों के सवाल पर मार्क्सवाद का एक ही स्टैंड हो सकता है. ऐसा नहीं हो सकता कि सामान्य मार्क्सवादी की  बातें सही हों और विशिष्ट मार्क्सवादी की बातें गलत हों. अगर सामान्य मार्क्सवाद के अनुसार 90% बातें सही हों और आपके विशिष्ट मार्क्सवाद के अनुसार वे ग़लत हों तो उसे स्पष्ट कीजिए. या फिर आप सामान्य मार्क्सवाद की ऐसी कोई सूची दीजिए जिस पर बात करना गुनाह है और अपने विशिष्ट मार्क्सवाद को बताइए जिस पर बात होनी चाहिए.

आपने लिखा है कि अकर्मण्य मार्क्सवादी जो राजेंद्र यादव के  साहित्यिक  क़द तक पहुँचना चाहता है...इस चुनौती की स्वीकारोक्ति मात्र ही उसे हिंदी साहित्य जगत की मुख्य धारा तक पहुँचा देती. जय पराजय बाद की बात है'- अगर हंस के पुराने अंक उठाकर देखे जाएं तो पता चलता है कि राजेंद्र यादव ने तमाम लोगों के सावालों को स्वीकारोक्ति दी है, पर वे सामान्य पत्र लेखक या जैसे लेखक हैं वैसे ही लेखक बन पाए.

सुधीर ने कहा है- 'इन संगठनों के शत- प्रतिशत सक्रिय कार्यकर्ता संगठन से सजातीय जीवन साथी तलाशने का अनुरोध करते हैं.' सक्रिय कार्यकर्ताओं की ऐसी माँग कोई संगठन तभी पूरी कर सकता है जब वह एक मैरिज़ ब्यूरो चलाता हो. यह बात इसलिए वाहियात लगती है कि संगठन के जितने लोगों को मैं जानता हूँ उनमें से अधिकांश ने विजातीय शादियां की हैं.

बावजूद इसके मैं मानता हूँ कि किसी संगठन में कुछ खास तरह की जातिवादी प्रवृत्तियां मौजूद हो सकती हैं. दूसरी बात यह है कि यह कोई मामूली बात नहीं है. जब सुधीर संगठन के नेतृत्व करने वालों में खुद थे जिसकी आज वे खुलकर आलोचना कर रहे हैं, तो क्या तब उन्होने यह बात उठाई थी? अगर वह इन मसलों को अपने जिरह में लाये होते तो बेहतर होता.

कुछ समय पहले जनज्वार ने एक अन्य क्रांतिकारी संगठन के बारे में कुछ सवाल उठाए थे. सवाल उठाने वाले ज्यादातर लोग  कैडर स्तर के लोग थे और वे शीर्ष नेतृत्व पर आरोप लगा रहे थे, जो सही था. लेकिन  यहाँ वह (सुधीर) व्यक्ति संगठन पर आरोप लगा रहा है जो स्वयं शीर्ष नेतृत्व में शामिल रहा है. आरोप भी ऐसे जो प्रथम दृष्टया निकृष्ट लगते हैं.

मैं क्रालोस और इंकलाबी मजदूर केंद्र  के नेताओं से भी यह पूछना चाहता हूँ कि उन्होंने एक आयोजन कर दलित मुद्दे पर स्टैंड लिया और सार्वजनिक पुस्तक वितरण किया. अब उस पर सवाल उठ रहे हैं तो उनका जवाब क्यों नहीं दे रहे? मुद्दा सार्वजनिक है तो उसका जवाब सार्वजनिक रूप से देना चाहिए. अगर यह मंच उन्हें जवाब के लायक नहीं लगता तो जहाँ उचित लगे वहाँ जवाब देना चाहिए. या आपने  यह मान लिया कि  पुस्तिका बाँट दी और बात फाइनल.

मैं यह भी कहना चहता हूँ कि क्रांति के लिए वस्तुगत परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण होती हैं परंतु संगठन के शीर्ष नेतृत्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इस बात को यह कह कर टाल देना भी ठीक नहीं होगा कि परिस्थितियां स्वयं नेतृत्व पैदा कर लेती हैं. इसलिए संगठनों को आत्मचिंतन करने की ज़रूरत है.

आप दहेज और कर्मकाण्ड का विरोध करते हैं तो इस बात पर भी गहरी नज़र रखें कि कार्यकर्ता सचेतन शादी विवाह के मामले में जातिवादी तो नहीं हैं. नेतृत्व से जुड़े लोगों पर तो विशेष रूप से नज़र रखी जानी चाहिए.जो भी निष्कर्ष निकालें उसके बारे में अच्छी तरह व्यवहारिक तरीके से सोच लें. मैं कोई नसीहत नहीं दे रहा हूँ एक सुझाव मात्र रख रहा हूँ.

3 comments:

  1. राम प्रकाश अनंत जी,
    आप किस से जवाब की उम्मीद कर रहे है यह समझ में नहीं आया. यदि आप क्रालोस से ऐसी उम्मीद करते है तो ऐसा होने वाला नहीं क्योंकि उससे जुड़े कमलेश मानते है कि दलित बहस गटर बहस है. उन्होने टिप्पड़ी की है, "This is the level of debate then i would say it is futile. Janjwar has mastery in glamorising and promoting such gutter level debate on serious issue. Those who have nothing to do for the society and sacrifice any thing, have access to internet are doing JUGALI. Ram bachaye aise bahaswajon se."

    जवाब के इंतज़ार में

    रमेश

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  2. दलितों पर हुए कार्यक्रम का आयोजक जब यह सोचता है तो जवाब कौन देने वाला...जेपी नरेला के लेख में टिप्पणीकर्ता का पता ये है..

    educate all

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    Sites I've joined इंकलाबी मजदूर केन्द्र-
    Activities kamlesh kumar joined इंकलाबी मजदूर केन्द्र-
    on इंकलाबी मजदूर केन्द्र 8/1/11

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  3. SUDHIR KE AAROP GATTUR KE SHIWA AUR KYA HAIN,REVOLUTIONERY ORGNISATION KI TALCHHAT AISE HI KISEE BHI GAMBHIR BAHAS KO GUTTER KI BAHASH BANA SAKTEE HAI

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