Aug 1, 2011

प्रमोशन की रेस में जिंदगी से हारे सिपाही


सुरक्षा और सहायता के लिए बना पुलिस महकमा खुद कितना बीमार, ढीला, सुस्त और लाचार है ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है। एकाध के अलावा किसी पुलिसकर्मी का फिजीकल फिटनेस से कोई नाता नहीं रहता है...

आशीष वशिष्ठ

प्रमोशन पाकर सबइंस्पेक्टर बनने के लिए होने वाली शारीरिक क्षमता परीक्षा (फिजिकल फिटनेस टेस्ट) उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों पर लगातार भारी पड़ रही है। राज्य के कई मंडलों में 20 जुलाई से चल रही इस परीक्षा में करीब 41 पुलिसकर्मी बेहोष हुए हैं और आजमगढ़ में हुई रेस के दौरान 37 वर्षीय पुलिसकर्मी अली सुजमा समेत चार पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है और कई की यादाश्त जा चुकी है।

 लंबे समय के बाद यूपी में सिपाही से दरोगा पद की पदोन्नती की प्रक्रिया चल रही है। यूपी में सब-इंस्पेक्टर के करीब 5380 पद खाली हैं। इस पद पर प्रमोशन के लिए पिछले मार्च में कराए गए लिखित परीक्षा में 3892 कैंडिडेट पास घोषित किए गए थे। इन्हीं कैंडिडेटों का फिजिकली फिटनेस टेस्ट के तहत 10 किलोमीटर दौड़ की परीक्षा मेरठ, आजमगढ़, कानपुर और सीतापुर पुलिस सेंटरों में 20 जुलाई से चल रही है, जिसमें अब तक 1470 कैंडिडेटों ने दौड़ परीक्षा पास कर चुके हैं।

पुलिसकर्मियों के लगातार बेहोष होने और मौत की घटनाओं की परवाह किये बिना मौत की दौड़ बदस्तूर जारी है। राज्य के स्पेशल डीजीपी बृजलाल ने यूपी के पुलिसकर्मियों से स्पष्ट किया है कि यदि वे अपने को फिजिकली फिट नहीं महसूस कर रहे हैं, तो वे प्रमोशन रेस में हिस्सा नहीं लें। बृजलाल ने माना कि कई जवान मोटापा-ब्लडप्रेशर एवं मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, तभी इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। स्पेशल डीजीपी का कहना है कि जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है, पहले फिट हों, तभी प्रमोशन की रेस के बारे में सोचें। उनके अनुसार फिजिकल फिटनेस दौड़ यूपी में रोकी नहीं जाएगी। फिट सिपाही ही सब-इंस्पेक्टर बनने का पात्र होगा।

गौरतलब है कि देषभर में राज्य पुलिस के जवान अल्प साधनों और संसाधनों और अस्त-व्यस्त दिनचर्या के साथ जीवन यापन करते हैं। किसी भी राज्य में पुलिसकर्मियों के काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं। वहीं पुलिसकर्मियों की कमी भी बड़ा मुद्दा है। आंकड़ों पर गौर करें तो देष में 1 लाख की आबादी के अनुपात में 142 पुलिसकर्मी तैनात है जोकि विष्व के तमाम छोटे-बड़े मुल्कों के मुकाबले काफी कम है।

संविधान के अनुच्छेद सात के अंर्तगत ‘पुलिस’ और ‘लॉ एण्ड ऑर्डर’ राज्य सूची का विषय है। नागरिकों की सुरक्षा और सहायता के लिए बना पुलिस महकमा खुद कितना बीमार, ढीला, सुस्त और लाचार है ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है। बेसिक ट्रेनिंग के बाद एकाध के अलावा किसी पुलिसकर्मी का फिजीकल फिटनेस से कोई नाता नहीं रहता है। ऊंचे पदों पर आसीन पुलिस अफसरों के लिए तो राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग और स्पेषल कोर्सेज की व्यवस्था का प्रावधान है लेकिन महकमे के मेरूदण्ड सिपाही से लेकर इंसपेक्टर तक के लिए ट्रेनिंग का खास इंतजाम नहीं है।

अधिकतर पुलिसवाले चौबीस घंटे डयूटी पर ही रहते है। उनके खाने, पीने और आराम का कोई निष्चित समय नहीं है। और ये बात समझ से परे है कि कोई व्यक्ति बिना खाये-पिये और आराम किये चौबीस घंटे पूरी ईमानदारी, निष्ठा और सर्तकता से डयूटी कर सकता है ? वहीं अनियमित दिनचर्या से फिजिकल फिटनेस और ष्षारीरीक क्षमता का क्षय होना स्वाभाविक है। सेना और केन्द्रीय सुरक्षा बलों के जवान सारा साल फिजिकल फिटनिस और ड्रिल से जुड़े रहते हैं। लेकिन राज्य पुलिस के जवानों और अफसरों को वीआईपी डयूटी, थाना, कोर्ट कचहरी और वसूली से ही फुर्सत नहीं मिलती तो वो भला फिजीकल फिटनेस पर क्या ध्यान देंगे।

पुलिस महकमे के सुधार और पुलिस कर्मियों को बेहतर सुविधाएं दिलाने की गरज से कई आयोग और दर्जनों सिफारिशें  सरकारी फाइलों में दबी पड़ी है। ये कड़वी सच्चाई है कि थानो में बिजली, पानी, टायलेट, स्टेषनरी और तमाम दूसरी सुविधाओं का सर्वथा अभाव ही रहता है। महकमे से जितना बजट किसी थाने को मिलता है उससे तीन बंडल पेपर खरीद पाना भी बडी बात है। जिन पुलिसकर्मियों के भरोसे लाखों लोगों की जान और माल की सुरक्षा की अहम् जिम्मेदारी है जब वो ही अनफिट और बीमार होंगे तो आम आदमी किसके सहारे खुद को सुरक्षित महसूस करेगा।

No comments:

Post a Comment