Jul 12, 2011

थानों में सिपाही कहाँ ?


हमें वारदात क्षेत्र में जाने के लिए आज भी साइकिल भत्ता मिलता है और थानाध्यक्ष को महीने दिन में तीन सौ रूपया।  तीन सौ रुपये के भत्ते वाला थानेदार महीने दिन तक 10-20 किलोमीटर के इलाके में कैसे दौरा कर सकता है...

अजय प्रकाश

लखनउ-बरौनी की सीधी रेल लाइन पर यूपी का अंतिम थाना तो बनकटा है,लेकिन जहां एक्सप्रेस गाड़ियां आमतौर पर रूकती हैं,वह भाटपाररानी है। भाटपानरानी नयी तहसील है और इसमें तीन थाने हैं। उन्हीं में से एक थाने में राइफल थामे पहरे पर खड़ा सिपाही पूछता है, ‘अच्छा ये बताइये कभी हम पुलिस वाले पीड़ित नजर नहीं आते आपलोगों को।’ उसके बाद अपने थाने को मिलने वाली सुविधाओं,भत्तों और जिम्मेदारियों को जब वह पुलिसकर्मी गिनाने लगता है तो एकबारगी लगता है कि अत्याचारी कहे जाने वाले इन थानों पर भी कम अत्याचार नहीं हो रहा है।

वह पुलिसकर्मी बार-बार नाम नहीं उल्लेख करने का आग्रह करते हुए कहता है-सच है कि बहुत सारे पुलिसकर्मी अपराधी हैं और गिरोहों से सांठगांठ रखते हैं, लेकिन जो काम करना चाहते हैं उनके लिए सुविधाएं क्या हैं। हमें वारदात क्षेत्र में जाने, रोजाना इलाके में दौरा करने के लिए आज भी साइकिल भत्ता मिलता है और थानाध्यक्ष को महीने दिन में तीन सौ रूपया।  तीन सौ रुपये के भत्ते वाला थानेदार महीने दिन 10-20 किलोमीटर के इलाके में कैसे दौरा कर सकता है.


किसी आरोपी को अदालत ले जाने पर बस, और ट्रेन का किराया नहीं मिलता है। थाने में पुलिस इतनी कम है कि कई बार एक आदमी को तीन-तीन दिन लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है। मैं अबतक सात थानों में रह चुका हूं और कह सकता हूं कि किसी थाने में जरूरत के मुताबिक पुलिसकर्मी और अधिकारी नहीं हैं। इसलिए पुलिस वालों को सिर्फ दोषी कहने की बजाय आपलोग सरकार से सुविधा मुहैया कराने का कोई उपाय क्यों नहीं कराते,जिससे कि पुलिस व्यवस्था में सुधार हो।

उक्त पुलिसकर्मी की बताई हालत न सिर्फ उसके  थाने में है ,बल्कि कमोबेश जिले  के सभी थानों की यही हालत है। जिले के मदनपुर थाने में 160  गांव हैं और इनमें कानून व्यवस्था बनाये रखने के जिम्मेदारी 50 सिपाहियों, दो सबइंस्पेक्टर और एक थानाध्यक्ष पर है। दो नदियों के विशाल पाट के बीच फैले इस इलाके में तीन गांव पर एक सिपाही अपराधों पर कैसे अंकुश लगाता होगा,इसको आसानी से समझा जा सकता है।

इसके बगल का थाना एकौना है और वहां 51  गांवों के देखरेख का जिम्मा 20 पुलिसकर्मियों पर है। मदनपुर थाने के थानाध्यक्ष विजय पांडेय बताते हैं,‘हमारे थाने में तो फिर भी दो सबइंस्पेटर हैं, भटनी में तो एक ही सबइंस्पेक्टर है।’गौरतलब है कि भटनी बड़ा थाना क्षेत्र है और वह बिहार बार्डर से जुड़ा है।

उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती और पदोन्नति बोर्ड के एक उच्चाधिकारी के मुताबिक थानों में 40  से 50 फीसदी पुलिसकर्मियों की कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए पहली बार उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती बोर्ड बना है और संभव है इस समस्या का समाधान हो सके। बोर्ड ने 35 हजार भर्तियां कर ली हैं और करीब 80 हजार और भर्तियां होने वाली हैं। इसी के साथ तीन हजार सबइंस्पेक्टरों की सीधी भर्ती और 55  सौ सिपाहियों को पदोन्नति के जरिये सबइंस्पेक्टर में बहाली होनी है।

लेकिन कुछ अधिकारियों का मानना है कि सिर्फ यह भर्ती ही एक सक्षम पुलिस बल को नहीं खड़ा कर सकती है। उत्तर प्रदेश में हुए खाद्यान्न घोटाले की जांच में शामिल रहे एसआइटी के एक इंस्पेक्टर की राय में,‘उत्तर प्रदेश पुलिस को तकनीकी,आधुनिक और नैतिक बनाने की एक संपूर्ण प्रक्रिया ही एक नयी छवि वाले पुलिस महकमें का भ्रुण तैयार कर सकती है।’

पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के शिकायतों  और सुझावों के मद्देनजर देखा जाये तो अपराध प्रदेश की छवि हासिल करते जा रहे इस प्रदेश की सूरत फिलहाल बदलने वाली नहीं है। कारण कि जिनपर अपराध रोकने की जिम्मेदारी है उनमें से बहुतेरे माफियाओं के सिपहसालार हैं और जो थोड़े पुलिसकर्मी काम करना चाहते हैं उनके पास साधन की कमी का वाजिब कारण है।

झांसी में एक हिंदी दैनिक के क्राइम रिपोर्टर बीके कुशवाहा कहते हैं,‘प्रदेश की मुखिया चाहे जितनी उठक-बैठक कर लें,अपराध पर कोई अंकुश लगती नहीं दिख रही है। हां अगर प्रदेश की मुखिया और पुलिस के आला अधिकारियों ने बढ़ते अपराधों से सबक लेते हुए पुलिस महकमें में सुधार की प्रक्रिया की शुरू कर दी तो राज्य इस छवि से उबरने में आने वाले वर्षों में जरूर कामयाब होगा।’


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