Jul 12, 2011

सरकार अब निजी हथियार बांटने की फ़िराक में !


राजनीतिक नेतृत्व को इस माहौल का सदुपयोग कर के  शांति स्थापना के लिए कुछ और कदम तुरंत उठाने चाहियें.सेना को वापिस बुलाने का फैसला लिया जा सकता है.उजड़े हुए आदिवासियों को दुबारा उनके गावों में बसाने का काम शुरू किया जा सकता है...

हिमांशु कुमार

सर्वोच्च न्यालय ने 5 जुलाई के फैसले में लोकतंत्र, लोग, सरकार, हिंसा आदि विषयों पर एक ऐसा फैसला दिया है,जिसका असर देश में अनेकों वर्षों तक होता रहेगा.इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान नक्सलियों को होगा जो ये सिद्ध करना चाहते थे कि ये व्यवस्था अब गरीबों की सुनेगी ही नहीं,इसलिए अब बन्दूक उठा लेना ही एकमात्र रास्ता है.साथ ही इस फैसले ने इस नकली होते जा रहे लोकतंत्र और सरकार को थोडा सा जीवन दान और दे दिया.वरना लोकतंत्र की बाकी संस्थाओं ने तो अपने स्तर पर लोकतंत्र की हत्या करने में कोई कसर नहीं छोडी.

आज लोकतंत्र की हरेक संस्था पर से लोगों का विश्वास समाप्त हो गया है.पुलिस पर किसी को भरोसा नहीं है, सरकार पर किसी को भरोसा नहीं है! निचले स्तर की अदालतों पर अब जनता का भरोसा नहीं रहा.ऐसे में अगर सर्वोच्च न्यायालय ने ये फैसला आदिवासियों के विरुद्ध दे दिया होता तो उसका सबसे अधिक फ़ायदा नक्सलियों को ही होता क्योंकि सरकार आदिवासियों पर जितना ज्यादा हमला करेगी आदिवासी जान बचाने के लिए उतना अधिक नक्सलियों के करीब जायेंगे.

लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को अपना अपमान मान रही है और भाजपा ने तो बाकायदा इस फैसले के खिलाफ बयान भी दे दिया है.ये कैसी राष्ट्रवादी पार्टी है जो अपने राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान नहीं करती.छत्तीसगढ़ सरकार ने तो इस फैसले के पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करने का भी निर्णय किया है,जो कि सभी प्रचलित परम्पराओं के विरद्ध है.इस बीच बलात्कार के आरोपी और फरारी सलवा जुडूम नेता इस समय भाजपा सरकार के प्रवक्ता बन कर सलवा जुडूम के पक्ष में बयान दे रहे हैं.एक खबर के अनुसार गृहमंत्री पी चिदंबरम और छत्तीसगढ़ के मुख्मंत्री श्री रमन सिंह ने एसपीओ का नाम बदल कर इस फैसले से बचने के भी संकेत दिए हैं.रमन सिंह ने इन एसपीओ को प्राइवेट हथियार देने के विकल्प पर भी विचार करने का संकेत दिया है !

सरकार की इस प्रकार की हठधर्मिता से अपना ही नुकसान करेगी.सलवा जुडूम के बाद हिंसा 22 गुना बढ़ गयी और नक्सलियों की संख्या में 125 गुना की वृद्धि हुई है.अभी भी सरकार अगर इस मुर्खता और जिद को नहीं छोड़ेगी तो वह लोकतंत्र बहुत नुकसान करेगी.अगर हम ध्यान से देखें तो इस फैसले के आने के बाद अहिंसा और शांती की दिशा में एक सकारात्मक माहौल बन रहा है . नागरिक समाज के इस कदम के बाद माओवादियों ने एसपीओ पर हमला ना करने की घोषणा की है.इस समय राजनीतिक नेतृत्व को इस माहौल का सदुपयोग कर के शांती स्थापना के लिए कुछ और कदम तुरंत उठाने चाहियें.सेना को वापिस बुलाने का फैसला लिया जा सकता है.उजड़े हुए आदिवासियों को दुबारा उनके गावों में बसाने का काम शुरू किया जा सकता है.

अगर अभी भी सरकार ने ये क्रूरता जारी रखी और बड़ी कंपनियों के फायदे के लिए गरीबों पर हमला करना जारी रखा तो उसका परिणाम यही होगा की नक्सलियों के प्रति इस देश के गरीबों के साथ साथ बुध्धिजीवियों का भी समर्थन और अधिक बढ़ जाएगा.इसलिए अगर नक्सलियों से छुटकारा चाहती है तो सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लागू करे वरना इसके बाद सरकार को बचाने कोई नहीं आएगा.



दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष,बदलाव और सुधार की गुंजाईश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.
 

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