Jun 11, 2011

उनका दुश्मन

मुकुल सरल


कोई दुश्मन न हो तो वह डर जाते हैं
क्योंकि तब
उन्हें देना होता है
दोस्तों से किए गए वादों का हिसाब

इसलिए वह
ढूंढ ही लेते हैं
कोई न कोई दुश्मन
वह चाहे कोई व्यक्ति हो
या महज़ तस्वीर

अभी-अभी टेलीविज़न पर
आई है ख़बर
उन्होंने ढूंढ लिया है
एक नया दुश्मन
जो छिपा बैठा है
किसी आईने में

इसलिए हुक्म हुआ है
सारे आईने तोड़ देने का

जिसके पास भी
बाक़ी होगा आईना
वह दुश्मन में गिना जाएगा
वह चाहे कोई कवि हो
या तुम्हारी आंखें

मुझे फ़िक्र है उस बच्चे की
जिसके पास बची हुई है वह हंसी
जिसमें मैं अक्सर
देखता हूं तुम्हारा चेहरा
एक उम्मीद की तरह...



कवि  और  पत्रकार मुकुल सरल जनसरोकारों के  प्रतिबद्ध रचनाकारों में हैं. उनसे mukulsaral@gmail.com   पर संपर्क किया जा सकता है.


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