Jun 13, 2011

‘ऐन्टीक’ वस्तुओं के नाम पर हो रहा ठगी का कारोबार

मोबाईल व इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कथा-कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है...

निर्मल रानी

ठगों द्वारा आम लोगों की जेब से पैसे निकलवाने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कभी कोई ठग ज़मीन में दबे सोने और चांदी के प्राचीन सिक्के या अशरफी सस्ते दामों में बेचे जाने के नाम पर किसी लालची व्यक्ति को ठग लेता है तो कभी नोट दुगने करने की लालच में कोई व्यक्ति ठगी का शिकार हो जाता है। कभी कोई ठग लोगों के घरों में जाकर सोने-चांदी के ज़ेवरों की सफाई के बहाने किसी का ज़ेवर उड़ा ले जाते हैं तो कभी कोई तांत्रिक के वेष में किसी के घर के भीतर ज़मीन में दबा हुआ धन निकालने के बहाने किसी परिवार को ठग ले है।


आमतौर पर ठग उनको ही अपना निशाना बनाते हैं जो या तो अधिक लालची होते हैं या फिर बहुत जल्दी धनवान बनना चाहते हैं या कम से कम समय में अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा पाले होते हैं। ऐसे ही लोग आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोबाईल फोन के माध्यम से चल रही ठगी का शिकार हो जाते हैं या फिर इंटरनेट व ई-मेल के माध्यम से ठगों द्वारा दी गई पुरस्कार तथा लाटरी का ईनाम निकलने जैसी झूठी सूचना के झांसे में आ जाते हैं।

मोबाईलऔर इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है!

हमारे देश में पिछले कई वर्षों से इसी प्रकार के ठगों का एक बहुत सक्रिय नेटवर्क विशेष रूप से हरियाणापंजाब,चंडीगढ़दिल्ली तथा राजस्थान के क्षेत्रों में काम कर रहा है। इससे जुड़े लोग कुछ गिनी-चुनी (ऐंटीक) वस्तुओं के नाम पर लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं। प्राचीन वस्तुओं या एंटीक के नाम पर जिन वस्तुओं को खरीदने-बेचने के जाल में लोगों को फंसाया जाता है उनमें कई वस्तुएं तो ऐसी हैं जिनका जि़क्र या तो हमारे प्राचीन ग्रंथों या शास्त्रों में कहीं मिलता है या फिर उन वस्तुओं का कोई धार्मिक महत्व होता है।

वहीं ठगों द्वारा अपने शिकारको कुछ प्राचीन वस्तुएं ऐसी भी बताई जाती हैं जिनका जिक्र इतिहास में भी मिलता है। ठगों के यह नेटवर्क इन वस्तुओं को बहुमूल्य वस्तु बताकर इनकी कीमत करोड़ों में बताते हैं। तथाकथित ऐंटीक वस्तुओं के इस कारोबार में अधिकतर तो ऐसा सुना गया है कि ठगों द्वारा किसी शरीफ और भोले-भाले परंतु लालची व्यक्ति से किसी ऐंटीक वस्तु को दिखाए बिना ही पैसे ऐंठ लिए जाते हैं। यानी जिस प्राचीन वस्तु के नाम पर सौदे की बात की जाती है उसका कहीं दर्शन ही नहीं होते। सारी कहानी अगर और मगरमें उलझाकर शिकार व्यक्ति से पैसे ठग लिए जाते हैं।

आइएआपको कुछ ऐसी ही वस्तुओं से परिचित कराते हैं जिनके नाम पर आजकल ठग रोज़ नए मुर्गों की तलाश में फिर रहे हैं। भगवान कृष्ण का काल्पनिक चित्र तो सभी ने देखा है। यह भी भगवान श्री कृष्ण के उस चित्र में दिखाई देता है कि उनके मुकुट में एक मोरपंखी लगी हुई है। बस इसी मोरपंखी के नाम पर ठगों का एक बड़ा नेटवर्क इन दिनों लोगों से पैसे वसूल रहा है।

इस मोरपंखी नेटवर्क से जुड़े ठगों द्वारा यह बताया जा रहा है कि कृष्ण के मुकुट में जो पंख लगा था वही वास्तविक तथा एकमात्र पंख अमुक व्यक्ति के पास है। उसे देखने तथा उसका सौदा करने-कराने के नाम पर शुरुआती दौर में दस-बीस हज़ार या ठगी का शिकार होने वाले व्यक्ति की हैसियत के अनुसार इससे भी अधिक पैसे ऐंठ लिए जाते हैं।

इसके पश्चात उसे खरीदने वाले लोग भी, जो इसी नेटवर्क का हिस्सा हैं, बीच के व्यक्ति को करोड़ों में वही मोरपंखी खरीदने का आश्वासन दे देते हैं। अब बिचौलिए के रूप में सौदे में शरीक किए गए व्यक्ति को यह नज़र आने लगता है कि वह जल्दी ही दलाली के रूप में मोटी रकम कमाने वाला है। खरीददार पार्टी इस प्राचीन वस्तु को खरीदने के लिए कीमत तो करोड़ों में ज़रूर लगाती है लेकिन इसे खरीदने में जानबूझ कर आनाकानी करती है और केवल समय गुज़ारती है।

दूसरी तरफ इस तथाकथित प्राचीन वस्तु को बेचने वाला इसे जल्दी बेचने का दबाव डाल कर बिचौलिए बने व्यक्ति से बार-बार मनचाही रकम वसूलता रहता है। इस दौरान वह बिचौलिया बने व्यक्ति को यह भी धमकाता है कि यदि तुम्हारे ग्राहक ने इसे नहीं खरीदा तो हमारे पास और भी कई ग्राहक हैं जिनके हाथों हम इसे बेच देंगे। और तुम्हारे साथ चल रहा सौदा निरस्त हो जाएगा। इसी बहाने वह बिचौलिया बना कर फंसाए गए शिकार से यथासंभव रकम वसूल लेता है। और आखिरकार इसे खरीदने वाला अपनी ज़ुबान से मुकर जाता है। उधर बेचने वाला भी सौदे की समय सीमा पूरी हो जाने का बहाना बना कर अग्रिम भुगतान के रूप में आए पैसों को हज़म कर जाता है।

इसी मोरपंखी की महत्ता को बढ़ाने के लिए ठगों द्वारा स्वयंभू रूप से इसकी तमाम विशेषताएं भी निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के तौर पर यह ठग बताते हैं कि इस मोरपंखी का प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई नहीं देता। ठगों द्वारा इसकी दूसरी विशेषता यह बताई जाती है कि इस मोरपंखी की जड़ में द्रव्य पदार्थ भी भरा हुआ है जो भगवान कृष्ण के समय से अब तक उस मोरपंखी में कायम है। यह मोरपंखी बुलेटप्रूफ भी बताई जाती है,वग़ैरह-वग़ैरह।

इसी प्रकार की प्राचीन वस्तुओं के नाम पर ठगी करने वाले सौदागर गजमुक्ता नाम की किसी वस्तु का व्यापार करते हुए भी देखे जाते हैं। इसके विषय में भी इन ठगों द्वारा यह बताया जाता है कि गजमुक्ता हज़ारों हाथियों में से किसी एक हाथी के मस्तिष्क के भीतर से निकली हुई कोई विशेष सामग्री है। भगवान कृष्ण के मुकुट की कथित मोरपंखी की ही तरह गजमुक्ता नाम की वस्तु को भी विचित्रचमत्कारिक तथा धार्मिक सरोकारों से जुड़ी वस्तु बताकर तथा इसके नाम पर भी करोड़पति बनने का सपना दिखाकर लालची लोगों को ठगा जा रहा है।

ऐसे ही प्राचीन वस्तु (एंटीक) के नाम पर पिछले दिनों ठगी की एक घटना प्रकाश में आई। इतिहास में इस बात का जि़क्र है कि दारा शिकोह एक धर्मनिरपेक्ष विचारों का शासक था तथा हिंदू संस्कृति और धर्मग्रंथों से वह बहुत प्रभावित था। इतिहास के अनुसार दारा शिकोह ने महाभारत को फारसी लिपि में लिपिबद्ध कराया था। अब यह तो नहीं पता कि दारा शिकोह द्वारा तैयार कराई गई फारसी में लिपिबद्ध महाभारत वास्तव में इस समय किस स्थिति में, कहां और किसके कब्ज़े में है। लेकिन इतिहास में दर्ज इसी प्राचीन बहुमूल्य एवं ऐतिहासिक ग्रंथ के नाम पर ठगों का एक नेटवर्क आम लोगों को ठगता फिर रहा है।

इस तथाकथित प्राचीन ग्रंथ के खरीद-फरोख्त के झांसे में ज़्यादातर वही लोग आते हैं जो या तो इतिहास के उपरोक्त घटनाक्रम से परिचित हैं या साहित्यिक दिलचस्पी रखते हैं। साथ ही साथ उनके पास पैसा भी है व ऐसी प्राचीन पुस्तक को देखने व समझने का शौक़ भी। 

पिछले दिनों इत्तेफाक से मेरी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जिससे ठगों ने मात्र 25 हज़ार रुपये ठगने के बहाने उसे उस कथित प्राचीन ग्रंथ के दर्शन’ कराये। फारसी लिपि में हाथों से लिखा गया वह पूरा का पूरा ग्रंथ नि:संदेह किसी भी पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने वाला था।

उसकी लिखाई, प्रत्येक पंक्ति के पीछे की विभिन्न रंगों की पृष्ठभूमि तथा उसमें स्वर्णयुक्त स्याही का किया गया प्रयोग निश्चित रूप से एक बार तो किसी भी पारखी व्यक्ति को भी यह सोचने के लिए मजबूर कर सकता है कि हो न हो यह वही महाभारत होगी जो दारा शिकोह ने फारसी में स्वयं लिखी है । लेकिन इस पुस्तक को भी ठगों ने मात्र दर्शनके लिए रखा हुआ है। दर्शनकरने में ही तमाम लोग अपनी आर्थिक गुंजाइश के अनुसार ठग लिए जाते हैं। इस पुस्तक के सौदे का भी अंत में वैसा ही हश्र होता है जैसाकि कथित मोरपंखी के सौदे में होता है। 

देश के पश्चिमी राज्यों में सक्रिय कथित ऐंटीक कारोबार के इस गिरोह से तमाम पढ़े-लिखे बुज़ुर्गज़मींदारराजनीतिज्ञ तथा समाज के तथाकथित प्रतिष्ठित लोग भी जुड़े हुए हैं। आम लोगों को एक बार सम्राट ठग नटवर लाल जी के उस महान एवं अकाट्य कथन को याद रखने की ज़रूरत है कि संसार में जब तक लालच जिन्दा है, तब तक ठग कभी भूखा नहीं मर सकता।लिहाज़ा आम लोग लालच से बचें तथा प्राचीन या एंटीक वस्तुओं के नाम पर फैले इस ठग नेटवर्क के झांसे में हरगिज़  न आएं।  


लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.

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