May 26, 2011

चुटका परमाणु संयंत्र के खिलाफ आदिवासी-किसान

एक बार वे बरगी बांध के लिये विस्थापन का दंश भोग चुके है और अब दूसरी बार उन्हें फिर विस्थापित किया जा रहा है जो उनकी सहन सीमा से बाहर है.उनका कहना है कि बरगी बांध निर्माण के दौरान विस्थापन के बाद से वे अपने आप को ठगा हुआ महसूस करते हैं...

        
चैतन्य भट्ट 

तकरीबन पच्चीस साल से भी ज्यादा के उहापोह के बाद जबलपुर से 60 किलोमीटर दूर मंडला जिले की सीमा में बरगी बांध के जलग्रहण क्षेत्र के नर्मदा तट पर बसे गावं  चुटका में दो हजार मेगावाट के प्रस्तावित परमाणु बिजली घर पर एक बार फिर शनि का साया पडता नजर आ रहा है.मंडला और सिवनी जिलों के पचास से अधिक गांवों में रहने वाले किसानों ने जिनमें बडी संख्या में आदिवासी शामिल है ने किसी भी हालत में अपना घर,आंगन और खेत छोडने से इंकार कर दिया है.इन किसानों ने संकल्प लिया है कि वे मर जायेंगे पर अपनी जमीन परमाणु बिजली घर के लिये नहीं देंगे.किसानों और आदिवासियों के इन तेवरों ने जिला प्रषासन के साथ साथ ‘न्यूक्लियर पॉवर  कॉरपोरेषन ऑफ इंडिया’ भी सकते में आ गई है.

आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला रोड पर टिकरिया से 27किलोमीटर दूर बरगी बांध रिजरवायर के किनारे बसे ग्राम चुटका और कुंडा के बीच 700- 700 मेगावाट की दो इकाईयां लगनी हैं। 20 हजार करोड़ लागत वाले इस परमाणु बिजली घर के लिये 3000एकड़ जमीन की आवश्यकता ता होगी जिसके लिये मंडला जिला प्रशासन के सहयोग से ‘न्यूक्लियर  पॉवर कारपोरेशन’ने सर्वे का काम भी शुरू किया था.जिसका स्थानीय स्तर पर वहां के लोगों ने विरोध किया,लेकिन सर्वे का काम जारी रहा.तब इससे नाराज होकर गांव वालों ने इकठ्ठे होकर सर्वे करने वाली टीम को खदेड़ दिया.

चुटका में परमाणु बिजली घर के लिये तीन हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिये तेजी लाने के उददेष्य से न्यूक्लियर पावर कारपोरेषन ने जैसे ही नये साल के पहले दिन जबलपुर में अपना दफतर खोला उसके तीसरे ही दिन ‘भारत नवनिर्माण जनक्रांति’के बैनर तले मंडला और सिवनी जिले के 54 गांवों के किसानों और आदिवासियों ने इकठ्ठे होकर अपनी जमीन देने से साफ इंकार करते हुये यह संकल्प लिया कि भले ही उनकी जान चली जाये पर वे अपनी एक बीता जमीन भी परमाणु बिजली धर के लिये नहीं देंगे.

हजारों किसानो और आदिवासियों की इस भारी भीड ने शासन प्रशासन के अलावा परमाणु बिजली घर की स्थापना से जुडी तमाम एजेन्सियों को चिन्ता में डाल दिया है इस संबंध में ‘भारत नव निर्माण जनक्रांन्ति’के संस्थापक आदर्श  मुनि त्रिवेदी का कहना है कि अधिग्रहित कियेजाने वाले दो जिलो के समस्त 54 गांव कृषि योग्य 35 हजार हेक्टेयर भूमि विषाल प्राकृतिक  वन को तबाह किया जा रहा है वे सभी संविधान की 5वी अनुसूचि के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र है जिनमें आदिवासियों को सुरक्षा, उनकी जमीन, जंगल, और जल को बचाने की संवैधानिक गारंटी प्राप्त है त्रिवेदी कहते हैं कि बरगी बांध के विस्थापन के बाद उनका दोबारा विस्थापन भारत के संविधान पर तथाकथित विकास के नाम पर अरबो रूपयों की काली कमाई का सपना देखने वाले ठेकेदारों,दलालों और राजनैतिक व्यक्तियों का सीधा सीध हमला है जिसे वे हर कीमत पर रोकने के लिये संकल्प ले चुके हैं .

केन्द्र सरकार के परमाणु उर्जा विभाग ने सन् 1984 में राज्य में दो हजार मेगावाट उत्पादन क्षमता के परमाणु विद्युत संयत्र को सैद्वान्तिक रूप से विचारार्थ स्वीकार करते हुये उपयुक्त स्थल के खोज की प्रक्रिया शुरू की थी.उस वक्त इसकी अनुमानित लागत दो सौ करोड़ रूपये के आसपास थी. मध्यप्रदेष विद्युत मंडल के ‘सर्वेक्षण और अनुसंधान केन्द्र’’ने इस केन्द्र की स्थापना के लिये षिवपुरी जिले के किसलौनी गांव के राजपुर  और जबलपुर के निकट चुटका गांव को उपयुक्त ठहराया. सर्वेक्षण टीम ने इन स्थानों के बारे में अपनी रिपोर्ट ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ और ‘परमाणु उर्जा आयोग’को भेजी.इस रिपोर्ट के आधार पर भाभा अनुसंधान केंद्र की एक टीम ने सन 86 में प्रस्तावित स्थलों का दौरा किया.चूंकि उस वक्त मध्यभारत के प्रभावषाली नेता केन्द्रीय रेल मंत्री माधवराव सिंधिया जिन्दा थे,इसलिये उन्होंने इस बात के लिये जोर लगाया कि परमाणु बिजली घर शिवपुरी  में ही स्थापित हो.इसके लिए उन्होंने इस टीम की खासी आवभगत की थी और उन्हें अपने महल में भी ठहराने  के बाद प्रस्तावित स्थल के मुआयने के लिये टीम को हेलीकाप्टर भी मुहैया करवाया था.

टीम की निगाह में बरगी के निकट चुटका इसके लिये सबसे ज्यादा उपयुक्त था,क्योंकि परमाणु केंद्र  की स्थापना के लिये पानी की सबसे बडी जरूरत थी. षिवपुरी जिले के दो उपयुक्त स्थलों में यदि परमाणु बिजली घर की स्थापना की जाती तो वहां पहले बांध की जरूरत थी, जबकि चुटका के पास  बरगी बांध एक बहुउद्देशीय योजना थी,जिसके पानी का सीधा सीधा उपयोग आसानी से परमाणु बिजली घर में किया जा सकता था.लेकिन माधवराव सिंधिया का केंद्र और राज्य में राजनैतिक कद जबलपुर के जनप्रतिनिधियों की तुलना में काफी बड़ा था,इसलिये चुटका का सर्वाधिक उपयुक्त होने के बाद भी इसे स्वीकृति नही मिल पाई और परमाणु बिजली घर की स्थापना की फाइल दब कर रह गई.

पिछले कुछ सालों में जब बिजली का संकट बढा और मांग और आपूर्ति के बीच का फासला काफी बढ़ने लगा तब एक बार फिर परमाणु बिजली घर की फाईल को पंख लगे ‘‘न्यूक्लियर पॉवर  कॉरपोरेशन’’ ने फिर पुरानी रिपोर्ट खंगालनी शुरू की. कारपोरेशन के अफसरों ने चुटका गांव का कई बार दौरा किया पर इस बीच एक बार इसको लेकर क्षे़त्रीयता की राजनीति गरमा गई. इसे चुटका की बजाय विदिशा,रायसेन और भीमपुर ले जाने का कुचक्र शुरू हो गया पर चुटका प्रोजेक्ट के पक्ष में जो सबसे बडी बात थी वो थी गरमी के दिनों में भी डेढ लाख घनमीटर पानी की उपलब्धता जो और कहीं मिल पाना संभव नही था.इसलिये न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरशन ने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु बिजली घर यदि कहीं स्थापित होगा तो वो स्थान चुटका ही होगा.

न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन के अध्यक्ष एस0 के जैन का कहना है कि इस परियोजना की स्थापना के बाद मंडला जिले के सुदूर इलाके के आदिवासियों के साथ साथ गौंड़वाना और महाकोशल के एक बड़े हिस्से का कायाकल्प हो जायेगा इतना ही नहीं इससे यह पूरा क्षेत्र हाईटेक के ग्लोबल मैप पर भी अंकित हो जायेगा. वहीँ  ग्रामीणों  का कहना है कि एक बार वे बरगी बांध के लिये विस्थापन का दंश भोग चुके है और अब दूसरी बार उन्हें फिर विस्थापित किया जा रहा है जो उनकी सहन सीमा से बाहर है. उनका कहना है कि बरगी बांध निर्माण के दौरान विस्थापन के बाद से वे अपने आप को ठगा हुआ महसूस करते हैं. उन्हें विस्थापन के दौरान जो भी आष्वासन दिये गये थे वे पूरे नहीं हुये. उन्हें न तो वैकल्पिक जमीन मिली न ही रोजगार जिसका उन्हें आष्वासन दिया गया था. जैसे तैसे उन्होंने अपने रहने का ठिकाना बनाया है कि फिर से उन्हें उजाड़ने की कोशिश  की जा रही है.

चुटका परियोजना प्रभावित संघ के अध्यक्ष भोलेसिंह गठोरिया    संघर्ष में साथ दे रहे पत्रकार नलिकांत बाजपेई का कहना है कि परमाणु उर्जा पर्यावरण और जल विषेषज्ञों ने वैज्ञानिक आंकड़ो के माध्यम से यह बताया है कि विष्व का कोई भी परमाणु बिजली घर पूरी तरह से विकिरण मुक्त नहीं है.यदि नर्मदा तट पर चुटका परियोजना को अनुमति दी गई तो अमरकंटक से लेकर खम्भात  की खाडी तक का जल विकिरण युक्त होकर विषाक्त हो जायेगा.यही कारण है कि अमेरिका फ्रांस व रूस सहित अनेक विकसित देषो ने परमाणु बिजली घर बनाने बंद कर दिये हैं.





राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।




1 comment:

  1. important information. Thankyou very much

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