May 27, 2011

फर्जी मुठभेड़ के 14 बहादुरों को आजीवन कारावास


पिछले वर्ष  उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की अदालत ने फर्जी मुठभेड़ में शामिल 14 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा देकर न्याय और समाज, दोनों की दृष्टि में महत्वपूर्ण काम किया. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए  हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जी मुठभेड़ों में शामिल पुलिसकर्मियों को फांसी की सजा देने की सिफारिश की है. ऐसे  में 'रनटोला  मुठभेड़' को लेकर  सोनभद्र की अदालत द्वारा दिया गया फैसला फर्जी मुठभेड़ों में अपने परिजनों और नेताओं को गवां चुके लोगों और संगठनों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. इसी उम्मीद से जनज्वार  डॉट कॉम  रनटोला  मुठभेड़ कांड समेत  इस क्षेत्र में हुए अन्य मुठभेड़ों में चली और चल रही लम्बी जाँच, एक के बाद एक आये नए मोड़ और अंत में परम्परा  से हटकर (रनटोला) मामले में हुए  फैसले की विस्तृत रिपोर्ट चार  किस्तों  में प्रकाशित कर रहा है...मॉडरेटर

पुलिसिया मुठभेड़ की कहानी किसी भी परिस्थिति में विश्वास किये जाने योग्य नहीं थी। दोनों मृतकों को आयी चोटों से साबित हो गया कि केवल 10-15 फीट की दूरी से गोली चलायी गयी थी। अतः10-15 फीट की दूरी पर मौजूद ऐसी पुलिस टीम जिसके पास ए.के.47 एवं एस.एल.आर.जैसे असलहे हों, पर दो बदमाश जिनके पास एक देशी कट्टा और 303 बोर का कट्टा हो, द्वारा हमला करने की कल्पना नहीं की जा सकती...

सोनभद्र से विजय विनीत

एक वर्ष पहले देश में जब रूचिका छेड़छाड़ मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एस.के.राठौर चर्चाओं में थे और उनके द्वारा किये गये घिनौने कुकृत्य की देश भर में भर्त्सना की जा रही थी, उसी समय उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में छः वर्ष पूर्व हुई मुठभेड़ को स्थानीय फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फर्जी करार देते हुए उसमें शामिल 14पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाने का ऐतिहासिक फैसला दिया। इस फैसले से पूरे देश में एक बार फिर पुलिस की वर्दी शर्मसार और खून के छींटों से लाल हुई, वहीं न्यायालय के प्रति भी लोगों का विश्वास बढ़ा।

इससे न्याय प्रक्रिया और जनवादी ताकतों की जीत हुई। सोनभद्र की अदालत के इस फैसले ने सिर्फ रनटोला मुठभेड़ ही नहीं,बल्कि तमाम मुठभेड़ों पर सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। वैसे भी उत्तर प्रदेश पुलिस मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में देश में  प्रथम पायदान पर है। सोनभद्र में हुई यह मुठभेड़ कोई पहली घटना नहीं थी,जिस पर उंगली उठी हो। जौनपुर के वर्तमान बसपा सांसद धनंजय सिंह को भदोही पुलिस ने चार बदमाशों समेत आठ वर्ष पूर्व मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। इसी तरह मीरजापुर जिले के भवानीपुर में 9 मार्च 2001 को 16 लोगों को पुलिस ने मारा था और कहा था कि मारे गये सभी नक्सली थे। इसमें जिस खूंखार नक्सली देवनाथ,लालब्रत,सुरेश,को पुलिस ने ढेर दिखाया था,वह सभी जीवित निकले। उस मुठभेड़ की जॉंच सीबीआई कर रही है।

सोनभद्र उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक अशिक्षित और पिछड़े जनपदों में शुमार है। पिछले एक दशक से यह जिला प्रदेश के अति नक्सल प्रभावित जिलों में भी शामिल हो गया है। देश का यह पहला जनपद है जिसकी सीमाएं चार-चार राज्यों बिहार,झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से लगती है। यह जिला ऊर्जा राजधानी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां देश की सर्वाधिक बिजली पैदा की जाती है। वहीं दूसरी ओर यही जिला देश का सबसे गरीब,पिछड़ा और भूमि विवादों में सबसे ऊपर है, जहां सर्वाधिक आबादी आदिवासियों की है।

सोनभद्र में 2 सितम्बर 2003 को पिपरी थाना क्षेत्र के रनटोला के जंगल में खुद को जांबाज़ कहने वाली पुलिस ने दो युवकों को लुटेरा बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था। मारे गये दोनों युवक पड़ोसी प्रान्त झारखण्ड के गढ़वा जनपद के मेराल कस्बे के रहने वाले थे। इसमें एक प्रभात कुमार श्रीवास्तव उर्फ अरूण इलाहाबाद में बीए प्रथम वर्ष का छात्र था। उसके पिता लल्लन प्रसाद श्रीवास्तव राजकीय माध्यमिक विद्यालय मेराल में प्रधानाचार्य थे। दूसरा युवक रमाशंकर साहू पुत्र बंशीधर साहू था। दोनों युवक एक ही गॉंव के थे।
फर्जी मुठभेड़ में मारे  गए प्रभात और रमाशंकर
इस मुठभेड़ के बाद मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर, भाकपा माले, राष्ट्रीय वन श्रमजीवी मंच समेत तमाम जन संगठनों ने इस फर्जी मुठभेड़ की जांच की आवाज तेज़ की। मारे गये छात्र प्रभात के पिता लल्लन श्रीवास्तव ने भी उच्च न्यायालय,मानवाधिकार आयोग समेत कई जगह गुहार लगाई। अन्ततः उनकी फरियाद रंग लायी और तत्कालीन जिलाधिकारी ने मजिस्ट्रेट जॉंच का आदेश ज़ारी कर दिये। मजिस्ट्रेट जांच अपर जिलाधिकारी ने की, जिन्होंने सर्वप्रथम मुठभेड़ स्थल देखा और फिर उन तमाम पहलुओं का बारीकी से निरीक्षण किया जिसने इस मुठभेड़ को अंजाम दिया।

पोस्टमार्टम की रिर्पोट पर अध्ययन करने पर उन्होंने अपनी रिर्पोट में लिखा कि शरीर पर जिस तरह से गोली के निशान बने हुये हैं, वह 60 से 70 फीट से चलाई गयी गोली से नहीं बन सकते हैं, बल्कि गोली बहुत ही पास से चलाई गई। अपर जिलाधिकारी की यही रिर्पोट सीबीसीआईडी के जांच का आधार बनी।

पुलिस ने मुठभेड़ की कहानी में दर्शाया था कि लुटेरे लूट के बाद उसी स्थान पर माल बांटने आये थे। माल बांटने के लिए वह फुसफुसाहट में बातचीत कर रहे थे, जिसे 60-70 फीट की दूरी से सुना गया। उनकी फुसफुसाहट सुनकर जब पुलिस ने उन्हें देखा और आत्मसमर्पण के लिए कहा तो लुटेरों ने फायर शुरू कर दिया। आत्मरक्षार्थ पुलिस ने भी गोली चलायी, जिससे दोनों युवक मारे गये।

अपर मजिस्ट्रेट ने 17 जनवरी 04 को अपनी जाँच आख्या में लिखा था कि कथित बदमाशों को पकड़ कर लाया गया था और बाद में मुठभेड़ में मारा गय। इसी खुलासे के बाद जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गयी। जॉंच के दौरान मुठभेड़ से सम्बन्धित तमाम पहलुओं पर विचार किया गया। जांच दल मारे गये दोनों युवकों के पिता और उन तमाम लोगों से मिले जहां से इस घटना से सम्बन्धित बातें जुड़ी थी।

जांच के बाद सीबीसीआईडी के निरीक्षक ने घटना से सम्बन्धित थाना क्षेत्र पिपरी में 21फरवरी 2006 को 15 पन्द्रह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए हत्या समेत विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज करा दी। इसमें दुद्धी कोतवाली क्षेत्र के तत्कालीन एसएसआई जयनाथ मिश्र, बभनी थानाध्यक्ष रामेश्वर नाथ, बीजपुर थानाध्यक्ष कमलेश्वर प्रताप सिंह, चौकी इंचार्ज म्योरपुर राजेश कुमार सिंह, कांस्टेबल राजेश सिंह , केश बिहारी, शाहजहां खॉं, अशोक कुमार, प्रमोद कुमार, दिनेश, सतीश कुमार, चन्द्रिका यादव, राणा प्रताप सिंह, शिवशंकर सिंह और रविन्द्रनाथ मौर्य शामिल थे।

सीबीसीआईडी द्वारा दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में उल्लेख किया गया कि मारे गये युवक प्रभात कुमार,रमाशंकर और दो अन्य युवक रामप्रवेश तथा जयशंकर झारखण्ड से ट्रेन पकड़कर अपनी रिश्तेदारी में जा रहे थे। झारोखास रेलवे स्टेशन पर रेल की क्रासिंग होने के कारण जब ट्रेन रूकी, इसी बीच पुलिस वहां पहुंच गयी और इन्हें पकड़ लिया। पुलिस रामप्रवेश और जयशंकर को पुनः बस में बैठाकर वहां से 50किमी दूर डाला चौकी पर ले गयी,जहां से बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। प्रभात और रमाशंकर को ट्रेन से 25 किमी दूर रेनुकूट लाया गया। फिर रेनुकूट से 9 किमी दूर रनटोला के जंगल में इस मुठभेड़ को अंजाम दिया गया।

अपराध शाखा की विवेचना से भी मृतक प्रभात कुमार और रमाशंकर को झारोखास रेलवे स्टेशन से पकड़कर ले जाने की बात प्रमाणित हुई है जिससे पुलिस द्वारा बनायी गयी मुठभेड़ की कहानी फर्जी पायी गयी। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद एक-एक कर 14 पुलिसकर्मियों ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जबकि एक दरोगा जयनाथ मिश्र अदालत का फैसला आ जाने के एक साल बाद भी फरार चल रहे हैं।

इस पूरे मामले में कुल 16 गवाहों का बयान हुआ। 4 जनवरी 2010 को अपर जनपद एवं सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट का कक्ष खचाखच भरा हुआ था। परिसर में भी मीडियाकर्मी व तमाम लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे। सभी को इस चर्चित काण्ड के फैसले का इन्तजार था। न्यायाधीश ने जैसे ही सभी नामजद पुलिसकर्मियों पर अपराध साबित किया, मृतक के पिता लल्लन प्रसाद की ऑंखों से ऑंसू निकल पड़े, वहीं अदालत में मौजूद कुछ पुलिसकर्मी फफककर रो पड़े। शायद उन्हें अपने किये का आभास हो चुका था।

इस मामले में अदालत ने सभी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सुनाई। गोली चलाने वालों पर एक-एक लाख तथा अन्य पर 50.-50 हजार रूपये का अर्थदण्ड भी लगाया। आजीवन कारावास के दौरान तीन साल सश्रम कारावास की सजा भी सुनाई गयी। रनटोला फर्जी मुठभेड़ मामले में अपने फैसले में सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट ने यह साफ लिखा है 'कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह साबित है कि उक्त चारों व्यक्तियों को एक साथ पकड़ा गया था तथा दोनों मृतकों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था। मुठभेड़ स्थल से दोनों मृतकों को आयी चोटें यह साबित कर रही हैं कि जिस तरह से पुलिस मुठभेड होना बता रही है, वह फर्जी है।
जाहिर है पुलिसिया मुठभेड़ की कहानी किसी भी परिस्थिति में विश्वास किये जाने योग्य नहीं थी। दोनों मृतकों को आयी चोटों से साबित हो गया कि केवल 10-15 फीट की दूरी से गोली चलायी गयी थी। अतः10-15 फीट की दूरी पर मौजूद ऐसी पुलिस टीम जिसके पास ए.के.47 एवं एस.एल.आर.जैसे असलहे हों, पर दो बदमाश जिनके पास एक देशी कट्टा और 303 बोर का कट्टा हो, द्वारा हमला करने की कल्पना नहीं की जा सकती।

परिस्थितियां यह साबित कर रही थीं  कि पुलिस ने सुनियोजित ढंग से मृतकों की हत्या की। आरोपी पुलिसकर्मियों ने अपने बचाव में कोई साक्ष्य प्रस्तुत न कर अपने आत्म बचाव के तर्कों को साबित नहीं किया । इससे न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि वाकई दिनांक 02-09-03को रनटोला के जंगल में जो पुलिस मुठभेड़ बतायी जा रही है, वह मुठभेड़ फर्जी थी। यही नहीं सरकारी अभिलेखों में हेराफेरी करने के दृष्टिकोण से पुलिस की जी.डी.में भी उलटफेर किया । इस मामले पर न्यायाधीश ने गंभीर टिप्पणी करते हुए लिखा कि ''अभियुक्तों द्वारा कारित यह कृत्य घोर निन्दनीय एवं गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। जब रक्षक ही भक्षक हो जायेगा तो जन सामान्य की सुरक्षा व्यवस्था असंभव हो जायेगी तथा जन सामान्य का विश्वास इस एजेन्सी से उठ जायेगा।'

सीबीसीआईडी के लोक अभियोजक में तो अपनी मांग में कहा था कि जिस संस्था पर जन सामान्य की रक्षा करने का दायित्व है, उसी के द्वारा दो लोगों को पकड़कर उनकी हत्या की गयी है, इस तरह से इन दोषी अभियुक्तो को मृत्युदण्ड से कम सज़ा नहीं देनी चाहिये। अब जब मुठभेड के लगभग छः साल बाद यह फैसला आया है और दोषी पुलिसकर्मियों को सजा हो गयी है,तो तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के. सत्यनारायणा पर भी हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है।

विजय विनीत जैसे पत्रकार  देश के उन पत्रकारों में हैं,जो  थानों पर नित्य घुटने टेकती पत्रकारिता के मुकाबले  विवेक को जीवित रखने  और सच को सामने लाने की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हैं.





3 comments:

  1. agali kist ka intzar, bahut sahsik kaam hai, vijay ji aapko badhai.

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  2. bartiy police ke liyae yah aam bat hai"

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  3. The article is important. The reporters of mainstream media must learn to write in this way.
    Congratulation Janjwar

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