Mar 16, 2011

मां-बाप पर होगी करवाई, जायेंगे जेल


आयोग बच्चों पर हिंसा रोकने व उन्हें तनाव से दूर करने के लिए बच्चों की सुरक्षा के लिए शीघ्र ही एक कठोर कानून को भी असली जामा पहनाने जा रहा है...


संजीव कुमार वर्मा


 राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग बच्चों पर हो रही हिंसा के मामलों को लेकर बेहद गंभीर है। माता-पिता द्वारा अपने तनाव को बच्चों पर निकालना अब माता-पिता को काफी महंगा पड़ सकता है। बच्चों पर अनावश्यक दबाव बनाने और उन पर हिंसा करने के मामलों को लेकर राष्ट्रीय बाल आयोग बहुत सख्त कदम उठा रहा है।

आयोग बच्चों पर हिंसा रोकने व उन्हें तनाव से दूर करने के लिए बच्चों की सुरक्षा के लिए शीघ्र ही एक कठोर कानून को भी असली जामा पहनाने जा रहा है। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद यदि घर की चार दीवारी में बच्चों के माता-पिता,अभिभावक केयर टेकर, बच्चों के ऊपर हाथ उठाते हैं तो ऐसी शिकायत मिलने पर संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध कठोर कार्रवाई होगी और उसे जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जायेगा।

पिछले दिनों राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा शांता सिन्हा एक कार्यक्रम में भाग लेने मेरठ में आयी थी। चाइल्ड लाइन संस्था के इस कार्यक्रम में उन्होंने बच्चों की पिटाई और हिंसा पर नाराजगी व्यक्त की। साथ ही माता-पिता और अभिभावकों से भी कहा कि वो अपने जीने का अंदाज बदल लें। अपना तनाव बच्चों पर हिंसा कर न उतारे।

बच्चों की पिटाई करने पर उनके मन मस्तिष्क पर गलत प्रभाव पड़ता है। घरों के अंदर खुद माता-पिता ही बच्चों पर हिंसा कर उनका मन कमजोर करते हैं। बच्चों पर हो रही घरेलू हिंसा पर आयोग दृष्टि केन्द्रीत किये हुए हैं। बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिए उन्हें हिंसा मुक्त रखने के लिए शीघ्र ही प्रस्तावित कानून जल्द घोषित कर दिया जायेगा। स्कूलों में बच्चों पर हिंसा के मामले पहले ही कानूनी कार्रवाई की सीमा में आ चुके हैं।

शांता सिन्हा उस दर्द को महसूस कर रही थी,जिसमें बगैर किसी ठोस कारण के अधिकतर माता-पिता घर से बाहर के अपने तनाव को बच्चों की पिटाई कर निकालते हैं। यह सब बहुत गलत तरीके से होते हैं। कई बार कोमल बच्चों का जीवन उनकी राह को ही बदल देता है। इन घटनाओं की अनुमति नहीं दी जा सकती।

मेरठ में  बाल अधिकार पर बोलतीं शांता सिन्हा
 माता-पिता और अभिभावकों को बच्चों को हिंसा मुक्त माहौल देने के लिए अपने घर से ही पहल करनी होगी। गुमशुदा बच्चों के जो मामले आते हैं। उनमें 95 प्रतिशत बच्चे तो माता-पिता की हिंसा खीज व तनाव देने के कारण अपना घर छोड़ते हैं। ऐसे बच्चे माता-पिता से डरने लगते हैं और अपने जीवन में घबराहट और असुरक्षा की भावना का अनुभव करते हैं।

इसलिए जिस घर में बच्चे का जन्म हुआ है,वहीं अगर हिंसा की पाठशाला व जुल्म का कारखाना बन जाये तो बच्चे कहां सुरक्षित रह पायेंगे। बच्चों पर हो रही इस तरह की घटना ही बाल अपराध का भी प्रमुख कारण है। घरों में बच्चों के प्रति हिंसा पर विदेशों में कई सख्त कानून है। वहां माता-पिता अभिभावक को जेल जुर्माना या दोनों सजाएं तक भोगनी पड़ जाती है।

 देश में भी इस कानून को लागू करने के लिए विदेशों के बाल अधिकारों से संबंधित बाल कानूनों का अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कानून के लागू होने के बाद माता-पिता अभिभावक बच्चों पर हिंसा नहीं कर पायेंगे। बच्चों को अपने घर में ही सुरक्षित वातावरण मिलेगा और इससे बच्चों के गुमशुदगी के मामलों में भी कमी आयेगी,क्योंकि अधिकतर बच्चों के घर से जाने के पीछे माता-पिता की हिंसा और घरेलू कारण सामने आते हैं।




(लेखक पत्रकार हैं, उनसे   goldygeeta@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है. )  


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