Mar 16, 2011

बीहड़ फिल्म महोत्सव 17 मार्च से और 23 मार्च से मऊ फिल्म महोत्सव


गांव -गिरांव से उठती सिनेमाई लहर

शाह आलम


अवाम का सिनेमा का सफर जो 2006 में अयोध्या से शुरू हुआ, पहले दौर में कुछ खामियों को दूर करने के बाद,अब धीरे धीरे संस्थाबद्ध हो रहा है। इन पांच वर्षों में हमने बहुत सारे उत्साही दोस्त बनाये हैं. शायद यही वजह है कि अयोध्या फिल्म उत्सव ने प्रदेश में एक सांस्कृतिक लहर पैदा की है.ऐसा इसलिए संभव हो सका है कि यहाँ फिल्मे ही नहीं दिखाई जाती बल्कि कला के विभिन्न माध्यमों के जरिये आमजन के बीच बेहतर संवाद बनाने,उनके दुःख में शामिल होने और अपनी खोई विरासत से रु-ब-रु होने का मौका मिलता है.


बहुत सारे शुभचितकों और मित्रों के कारण ही हम कई पहलकदमियां ले पा रहे हैं, जो हमें लगातार इसे बेहतर और व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित करते रहें हैं। गावं-गिरांव में फिल्म उत्सव का प्रयोग फिल्म सोसाइटी के गठन के साथ फिल्म निर्माण,  प्रदर्शन  , वितरण,प्रकाशन, संग्रहालय, डिजिटल डायरी, फेलोशिप, फिल्म निर्माण प्रशिक्षण  आदि परियोजनाओं पर गंभीरता से काम हो रहा है, ताकि यह व्यापक दायरे में आकार ले सकें।

हम मानते हैं कि यह आन्दोलन तभी सफल होगा जब लोग खुद सिनेमा का निर्माण करें। जिसमें उनकी अपनी सोच हो। हम सच्चे सार्थक सिनेमा को जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं। जिसके तहत हमसे जुड़े साथियों ने 2006 से कई फिल्मों का निर्माण किया, इसे कई उत्सवों में जारी एवं प्रदर्शित किया गया। अयोध्या ,मऊ, जयपुर , औरैया, इटावा में कई स्थानों पर फिल्म उत्सव करते आ रहे हैं। सबसे जरुरी है कि इसकी निरंतरता बनी रहे.

आप से आग्रह है कि आप भी अपने गांव, शहर, कस्बों में ऐसे आयोजन कर अवाम के साथ खड़े हो। इन आयोजनों कि सार्थकता तभी सही साबित होगी जब लोगो के छोटे छोटे सहयोग से इसे हम अपने उत्सव के तौर पर जगह जगह आयोजित कर पाएंगे। निजी कम्पनियों, सरकारी सहायता या किसी एनजीओ के स्पांसरशिप के बिना छोटे-छोटे स्तर पर सहायता लेकर बनने वाली फिल्मों को एक मॉडल के रूप में स्थापित करने की कोशिश की गई।

अवाम का सिनेमा का यह प्रयास रंग ला रहा है। इससे जुड़े कई युवा अब अपने सीमित संसाधनों और छोटे कैमरों की मदद से गांव-कस्बों की समस्याओं,राजनैतिक उथल-पुथल और बदलावों को दुनिया के सामने पेष कर रहे हैं। अवाम का सिनेमा की इस श्रृंखला ने एक माडल रखा है.कि किस तरह जनता कि हिस्सेदारी और सहयोग से सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है।

सत्रह मार्च से दूसरा बीहड़ और 23मार्च 20011से तीसरा मऊ फिल्म उत्सव शुरु हो रहा है। इस मौके पर ‘हू इज तपसी’फिल्म भी रिलीज की जाएगी। पिछले उत्सव कि तर्ज पर सिनेमा जन सरोकारों पर केन्द्रीत पुस्तक श्रृंखला का प्रकाशन हो रहा है। उम्मीद है कि चम्बल घाटी और मऊ का यह आयोजन आप को पसंद आएगा।




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