Dec 17, 2010

और मैं ठगी रह गयी !


करीब तीन घंटे के बाद मेरे नंबर पर घंटी बजी। एक अनजान नंबर देख मेरी उत्सुकता वैसी ही थी जैसी उस अनजान व्यक्ति के दरवाजा खटकाने पर हुई थी...


विभा सचदेवा

जब भी  किसी घर का दरवाजा खुलता है तो दरवाजा खोलने वाले को उत्सुकता होती है कि आखिर कौन है। वही उत्सुकता मुझे भी हुई। दरवाजा खोलते ही मैंने पूछा, ‘कौन, किससे मिलना है?’

जवाब में सामने वाले ने कहा,मैडम मैं आपके दूधवाले का भाई हूं। मैं बताने आया था हमारी मां बहुत बीमार हो गई है और हमलोग मां को आल इंडिया मेडिकल (एम्स)ले जा रहे हैं। उसने मुझसे बताया है चार-पांच दिन नहीं आ पाएगा, तब तक आप कहीं और से दूध ले लेना।

तब मेरे मन में ख्याल आया कि अब थैली वाला दूध पीना पड़ेगा। दूसरे ही पल मेरे मन की भावनाऐं उस बीमार मां के प्रति जाग उठी और वो बोली,‘कोई बात नहीं भईया, हम मैनेज कर लेंगे।’ ये सुनते ही उस आदमी ने कहा ‘मैडम अपना फोन नंबर दे दीजिए,वो आने से पहले आपको बता देगा’। तब मैंने एक पल के लिए सोचा कि नम्बर दूँ की नहीं, फिर   दूसरे ही पल में फोन नंबर दे दिया और वह नंबर लेकर चला गया।

करीब तीन घंटे के बाद मेरे नंबर पर घंटी बजी। एक अनजान नंबर देख मेरी उत्सुकता वैसी ही थी जैसी उस अनजान व्यक्ति के दरवाजा खटकाने पर हुई थी। मेरे फोन उठाते ही दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘मैडम मैं आपका दूध वाला बोल रहा हूं,मेरी मां बहुत बीमार है। प्लीज आप मेरे भाई को कुछ पैसे दे दीजिएगा,बाकी मैं आकर हिसाब कर लूंगा।’ मैंने ठीक है कह, फोन रख दिया। थोड़ी देर बाद वही आदमी आया जो सुबह आया था।

उसे देख मैं बटुआ लेने चली गयी। बटुआ खोलते वक्त मैं दुविधा में रही कि इसको कितने पैसे दूं। एक तरफ दिमाग आ रहा था उतना ही दूं जितने दूध के बनते हैं तो दूसरी तरफ दिल बोल रहा था,‘बेचारे को जरूरत है,इतने से उसका क्या होगा।’ दिल और दिमाग दोनों के इस द्वंद में मैंने अपनी सुनी और 600 रुपये निकालकर दे दिए। बाहर जाकर उसके ये बोलने की देर थी कि पैसा, तो मैंने कहा ये लो भईया। हाथ में नोट लेते हुए उसने कहा ‘मैडम बस इतने से,इतने में तो कुछ नहीं होगा।’

थोडे और दे दीजिए।’ फिर मैंने 500 रुपये और निकाल कर उसे दे दिये। पहले के छह सौ रूपये और अभी दिये 500 रुपये और मिलते ही वह व्यक्ति वहां से छूमंतर हो गया और मैं भी संतुष्टि की भावना के साथ अंदर चली गई। अंदर जाते ही बाहर से किसी के आने की आवाज आई। बाहर की तरफ देखा तो मेरी मां थी। मैंने पूरी बात मां को बताई तो उन्होंने पूछा ‘उसको फोन नंबर कैसे पता चला हमने तो कभी दिया नहीं था।’तब मैंने मां को बताया कि आज ही सुबह मैने ही दिया था। उसके बाद पूरी बात बतायी।

मां चौंकते हुए बोली,‘तुझे कैसे पता वो दूधवाला ही था? तूने पहले कभी उसकी आवाज फोन पर सुनी है।’इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने उस नंबर पर फोन मिलाया जिससे उस दूधवाले का फोन आया था। लेकिन जो जवाब मुझे मिला उससे मैं ठगी रह गयी। जिस नंबर से फोन आया था वो मेरी गली के अगली गली में स्थित एसटीडी का नंबर था। जबकि दूधवाला तो शहर से 25 किलोमीटर किसी गांव से आत है।

फोन रखते ही मेरी मां ने पूछा और जवाब सुनने के बाद बोली,‘इतने पढ़े-लिखे होने के बाद भी तेरे में अकल नहीं आई। लड़की के अंदर की अच्छी लड़की जैसे टूट-सी गई थी और बुरी लड़की उसको बार-बार कह रही थी कि देख लिया मेरी बात न मानने का नतीजा। फिर भी उस लड़की ने अपने मन को तसल्ली दी और वो यही दुआ करती रही कि,‘हे भगवान कल दूधवाला न आये और मेरा शक  झूठा साबित हो।

सुबह रोज की तरह आज भी दरवाजा खटकने की आवाज आयी। मैं झट से उठकर बाहर की तरफ भागी तो देखती हूं सामने कि दूधवाला खड़ा है। तभी मेरी मां भी बाहर आ गयी और बोलने लगी ‘और करो अच्छाई। ये कलयुग है रामयुग नहीं, किसी दिन इस अच्छाई के चक्कर मे घर मत लूटवा देना।

इतना बोल मां ने दूधवाले के सामने बर्तन रख दिया। दूधवाला भी मां के गुस्से को ताड़ गया और पूछा,‘अरे क्यों डांट रहीं हैं बीटिया को।’उसके पूछते ही मां षुरू हो गयीं। पूरा किस्सा सुनते ही वह जोर-जोर से हंसने लगा। उसके बाद दूधवाले ने ठगी के ऐसे इतने मामले बताये कि मुझे एकबारगी लगने लगा कि भले लोगों की जगह समाज में बहुत कम रह गयी है। हालांकि मन में द्वंद भी था कि अगर मैंने इसे मान्यता बना ली तो वह बहुतेरे लोग जिन्हें कभी मदद की जरूरत होगी वे भी वंचित रह जायेंगे. 


  •      पुणे स्थित इंटरनेशनल स्कूल ऑफ़ ब्रोडकास्टिंग एंड जर्नलिज्म से इसी वर्ष पत्रकारिता  कर लेखन की शुरुआत. सामाजिक विषयों  और फ़िल्मी  लेखन  में रूची.उनसे sachdeva.vibha@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है.

1 comment:

  1. accha anubhav hai aapka, aise thagon ki sankhya delhi jaise shahron men lagatar badh rahi hai, savdhan karne ke liye vibha ji ko badhai.

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