Apr 6, 2017

प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े बच्चों का एडमिशन नहीं होगा दिल्ली में

केजरीवाल सरकार ने जारी किया पहली बार ऐसा कोई फरमान, मानवाधिकार संगठनों ने उठाए सवाल, कहा यह नियम जीने के अधिकार के खिलाफ है 

जनज्वार। किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़े बच्चों को दिल्ली सरकार के स्कूलों में एडमिशन नहीं दिया जाएगा। यह आदेश दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा सभी स्कूलों के प्रिंसिपल को भेज दिया गया है। केजरीवाल सरकार ने प्रवेश न देने का ऐसा कोई 'कोड आॅफ कंडक्ट' पहली बार लागू किया है।



गौरतलब है कि हाल ही में डीओई ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें दिल्ली सरकार के स्कूलों में किन कारणों से और कैसे बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जाएगा, ऐसे 21 कारण क्रमवार गिनाए गए हैं।  

इसी में 21 वें नंबर पर प्रतिबंधित संगठन से किसी भी तरह से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को एडमिशन न दिया जाना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने इसे मूल अधिकारों से वंचित किया जाने वाला आदेश बताया है और मांग की है कि इसे तत्काल प्रभाव से खत्म किया जाए। 

इस बारे में कुछ भी पूछने पर दिल्ली सरकार के अधिकारी बचाव की मुद्रा अपना लेते हैं, साथ ही यह कहना नहीं भूलते कि यह निर्देश सिर्फ उन बच्चों पर लागू होते हैं जो ऐसे इलाकों से ताल्लुक रखते हैं, जहां प्रतिबंधित संगठन संचालित होते हैं। इस आदेश का असर दिल्ली में 6 से 12 तक पढ़ने वाले बच्चों पर सर्वाधिक पड़ेगा। 

यानी सिर्फ शक की बिनाह पर आरोपी किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया जायेगा कि वह प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा हो सकता है, उसके प्रति वैचारिक रूप से जुड़ा है या समर्थक है। 

देश में कुल 37 प्रतिबंधित संगठन हैं। डीओई के इस दायरे में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित संगठनों लश्कर—ए—तैयबा, जैश—ए—मोहम्मद, बब्बर खालसा इंटरनेशन, कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया (माओवादी) और उत्तर पूर्व के कई प्रतिबंधित संगठन भी आते हैं।

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की महासचिव कविता श्रीवास्तव ने इसे जीने के अधिकार पर हमला बताया और कहा कि इसे भूल मानते हुए तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होने यह भी कहा कि यह शिक्षा निदेशालय का यह सर्कुलर सर्वोच्च न्यायालय के उन आदेशों की भी अवहेलना है जिसमें अदालत ने कहा ​है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने या समर्थक होने भर से कोई अपराधी नहीं हो जाता। 

​कविता श्रीवास्तव आगे कहती हैं, हर तरह के अतिवादियों के बच्चों को ज्यादा तरजीह के साथ मुख्यधारा में लाने की कोशिश करनी चाहिए, जबकि केजरीवाल सरकार इसके उलट कदम उठा रही है। बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का सर्कुलर जाहिर करता है कि केजरीवाल सरकार खुद अतिवाद की ओर बढ़ रही है।

सर्कुलर में और क्या—क्या लिखा है विस्तार से देखें नीचे—


2 comments:

  1. सर्कुलर में पेरेंट्स की नहीं छात्र की बात की गयी लगती है.

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  2. ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। सुधार कर दिया गया।

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