Apr 10, 2017

पत्रकार और थानाध्यक्ष के झगड़े में खबर ही बदल गयी

महेश कुमार का दलित होना पत्रकार के लिए मौके की तरह था। आप खुद भी खबर देखेंगे तो पाएंगे कि कहीं पत्रकार यह नहीं बता पाता कि हमलावर चाहते क्या थे...... 

जनज्वार। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की एक खबर कल से चर्चा में है। खबर के मुताबिक 8 अप्रैल की रात मनकापुर गांव के दलित छात्र महेश कुमार भारती पर इसलिए हमला किया गया कि वह यूपीएससी का साक्षात्कार न दे सके। 
हिंदुस्तान में छपी खबर
पर बीएचयू से भूगोल में एमए प्रथम वर्ष के छात्र महेश कुमार भारती के मामले में जब पड़ताल की गयी तो कुछ और ही मामला सामने निकल के आया। 

हिंदुस्तान दैनिक और उसके आॅनलाइन पोर्टल के मुताबिक बलरामपुर जिले के गैसड़ी थाना के मनकापुर गांव का महेश कुमार भारती 8 अप्रैल की रात शौच के लिए अपने घर से निकला। पहले से घात लगाए 6 लोगों ने उस पर जानलेवा हमला कर दिया। हमलावरों में एक के हाथ में चाकू था। चाकू से भी उस पर वार हुआ। शरीर पर चाकू के निशान हैं। 

अखबार और उसका आॅनलाइन पोर्टल हमले का कारण लड़के का दलित होना बताता है। कारण के रूप में अखबार की ओर से यह भी बताया जाता है कि हमलावर नहीं चाहते थे कि महेश कुमार भारती आइएएस की परीक्षा देने जा सके। हालांकि महेश आइएएस की नहीं, बल्कि मेंस पास करने के बाद यूपीएससी का साक्षात्कार देने जाने वाला था। 

यही खबर अमर उजाला और दैनिक जागरण में भी छपी है। पर उसमें हमले कारण दलित होना और हमलावरों का मदसद इंटरव्यू देने से रोकना नहीं बताया गया है। इसलिए अमर उजाला और दैनिक जागरण की खबर न कहीं शेयर हो रही है और न ही कोई चर्चा कर रहा है। 

ऐसे में सवाल है कि हिंदुस्तान अखबार पत्रकार की खबर का एंगल कैसे बदला? 

दरसअल, पत्रकार और गैसड़ी थानाध्यक्ष संपूर्णानंद तिवारी के बीच इस खबर के बारे में जानकारी लेने के दौरान ठन गयी। पत्रकार ने जानकारी लेने के दौरान ताव आने पर थानाध्यक्ष को तुम से संबोधित किया और हम तुम्हें देख लेंगे।

ऐसे में थानाध्यक्ष को भी पीछे नहीं रहना था सो थानाध्यक्ष ने पत्रकार को चमकाते हुए कहा, 'तुम हमारे लिए गाली है। हम पूरब के हैं। ठीक से बोलो नहीं तो हम तुमसे निपट लेंगे। अभी वर्दी में हैं तो कमजारे न समझो।' 

ऐसे में पत्रकार ने बड़े अधिकारियों का हवाला देते भौकाल टाइट किया। पर थानाध्यक्ष ने कह दिया जो करना है करो। मैं किसी से नहीं डरता। जाहिर है बात यहां खत्म नहीं होनी थी। और खत्म हुई भी नहीं। 

महेश कुमार का दलित होना पत्रकार के लिए मौके की तरह था। आप खुद भी खबर देखेंगे तो पाएंगे कि कहीं पत्रकार यह नहीं बता पाता कि हमलावर चाहते क्या थे? क्यों परीक्षा देने से महेश को वंचित रखना चाहते थे। 

नाम न छापने की शर्त पर एक पत्रकार बताते हैं, 'महेश एक मेधावी लड़का है और उसका परिवार बहुत सामान्य। उनका गांव में कोई दुश्मन नहीं और महेश का झगड़े से कोई लेना—देना नहीं। वह मूड फ्रेश करने के मकसद से रात 9 बजे के आसपास गांव की ही सड़क पर टहलने निकला था तभी किसी दूसरे गांव के दो मोटरसाइकिल सवारों से इसकी कहासुनी हो गयी। यह अकेला था और वह तीन—चार। उन्होंने इसे दो—चार हाथ लगा दिया और चलते बने। किस्सा बस इतना ही था। पर पत्रकार और थानाध्यक्ष के बीच की अहम की लड़ाई में क्या से क्या हो गया।'

पत्रकार से यह पूछने पर कि लेकिन सभी अखबार गंभीर रूप से घायल क्यों लिखे हुए हैं, तो उनका कहना था, हिंदुस्तान की खबर इतनी हिट हो गयी कि हमें यह लिखना ही पड़ा। अन्यथा वह कैसा गंभीर घायल है जो दिल्ली चला गया और इंटरव्यू दे रहा है।

जनज्वार से बातचीत में गैसड़ी थानाध्यक्ष संपूर्णानंद तिवारी ने भी माना कि हिंदुस्तान दैनिक के पत्रकार से उनकी कहासुनी हो गई।

लेकिन इस गलत खबर को भुगत कौन रहा है? जनता और पाठक। पहले गलत खबर के रूप में और इससे भी बढ़कर गलत विश्वलेषण के रूप में। कई संगठन और वरिष्ठ पत्रकार भी खबर को शेयर कर रहे हैं। थानाध्यक्ष और पत्रकार का कुछ नहीं बिगड़ा। दोनों अपने धंधे में मस्त। एक नए मामले देख रहा है और दूसरा नई खबरें। 

मुकदमा 323 और 147 के तहत अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज हो चुका है। महेश कुमार के भाई बिंदेश्वरी भारती ने मुकदमे में लिखवाया है कि दो मोटरसाइकिल सवार मेरे भाई पर हमला कर दिए और मारा। 

अभी की ताजा खबर के मुताबिक आज 10 अप्रैल को महेश कुमार भारती स्वस्थ्य तन और मन से दिल्ली में साक्षात्कार दे रहा है। आज ही उसका साक्षात्कार है। आप दुआ कीजिए वह सफल हो और बड़ा अधिकारी बनकर आपको ऐसे थानेदारों और पत्रकारों से बचाने के कुछ रास्ते निकाले।  

4 comments:

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  2. 'यह अकेला था और वह तीन—चार। उन्होंने इसे दो—चार हाथ लगा दिया और चलते बने। किस्सा बस इतना ही था।' (सामान्य झगड़े या दो चार हाथ लगने पर कौन लौंडा थाने में जाता है? चोट के निशान के बिना तो आम आदमी का मामला दर्ज नहीं होता. सामान्य थप्पड़बाजी, लात-घूँसे आदि के मामले पुलिस दर्ज कहाँ करती है? कई बार तो मर्डर के केसेज में भी मामला दर्ज करते समय हीला हवाली होती है और प्रेशर पड़ने पर ढीले-ढाले तरीके से मामला दर्ज किया जाता है ताकि बाद में रफा दफा किया जा सके. यूपीएससी क्लर्की का एग्जाम नहीं लेती मुख्यतः क्लास वन पोस्ट के एग्जाम और इंटरव्यू कन्डक्ट करती है. इस मामले में सच चाहे जो भी हो पर इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में सामंती मानसिकता अभी भी मौजूद है.)

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  3. यही तो जनज्वार आपको बताने की कोशिश कर रहा है कि खबर बेचने के लिए हमले में आइएएस शब्द जोड़ा गया। हमले को परीक्षा देने से रोकने वाला बनाया गया अन्यथा एक दलित का दो—चार घूंसे पड़ना कहां कोई खबर बनती है। दूसरा कि दलितों पर हमले कम नहीं हो रहे कि गलत खबरों का सहारा लिया जाए। झूठी खबरों से कभी कमजोर लोगों का भला नहीं होता। उपर से जो आपके पक्षधर हैं उन्हें भी शर्मिंदा होना पड़ता है कि गलत खबर को उन्होंने आगे बढ़ाया।

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  4. आपका स्टैंड समझ आता है। आपको पता हो कि UPSC का एग्जाम देने का ज्यादातर अभ्यर्थियों का प्राथमिक मकसद IAS बनना ही होता है। सामान्य बोलचाल में लोग यूपीएससी को IAS ही कह देते हैं। जहाँ तक हमलावरों के इरादे की बात है तो बताइए कि पिछले साल अनुसूचित जाति के दो सगे भाइयों ने IIT JEE में प्रवेश पाया था तो उनके घरों पर तो पत्थर बरसाए गए थे। इस हमले का मकसद क्या था। दलितों को घोड़ी पर चढ़ने की वजह से पीट दिया जाता है उसका मकसद क्या होता है। समझ सकता हूँ आपकी प्रगतिशीलता को!

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