Mar 27, 2017

मन की बात में पहले भोजन बर्बादी पर भाषण दिया और फिर भोजन बर्बादी के कार्यक्रम के मेहमान बन गए

मोदी जी 'मन की बात' किस रिश्तेदार को सुनाते हैं, जब खुद वही करते हैं जो दूसरे पैसे वाले मंत्री, विधायक और पूंजीपति करते हैं। क्या उनकी नैतिक जिम्मेदारी नहीं कि ऐसे कार्यक्रमों का बहिष्कार कर अपने रईस मंत्रियों को सबसे पहले भोजन बर्बादी करने से रोकें.....

जनज्वार। मोदी जी ने जब कल मन की बात में खाने की बर्बादी पर भाषण दिया और बचाने की की अपील की तो देश को बहुत अच्छा लगा। देश के आम नागरिकों को लगा कि जिस देश की 80 फीसदी आबादी को ठीक से दो समय का भोजन नहीं मिलता, वहां इस तरह की बर्बादी रोकने पर पहल एक सकारात्मक और जरूरी प्रयास है।  
वैंकेया  नायडू  द्वारा ट्विटर पर शेयर की गई एक फोटो
पर थोड़ी ही देर में उनके बाकि बयानों की तरह यह भी खालिस ड्रामा साबित हुआ। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के शब्दों में कहें तो 'जुमला।' आपको याद होगा कि मोदी जी के हर खाते में पंद्रह लाख के बयान को अमित शाह ने मोदी जी का चुनावी जुमला बता दिया था। तब भाजपा और प्रधानमंत्री की बहुत किरकिरी हुई थी। 

कल 'मन की बात' करने के बाद मोदी जी अपनी सरकार के वरिष्ठ मंत्री वैंकेया नायडू के यहां एक भव्य कार्यक्रम में पहुंचे। वैंकेया नायडू मोदी सरकार में शहरी विकास के साथ शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री हैं। मंत्री ने अपने आवास पर 'उगादि' का आयोजन रखा था जिसमें सैकड़ों की सख्या में मेहमान पहुंचे, जिसमें बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी भी थे। उगादि दक्षिण भारत में नववर्ष का दिन होता है। मंत्री का ताल्लुक दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश से इसलिए उन्होंने अपने यहां कार्यक्रम रखा था। 

प्रधानमंत्री मन की बात करने के बाद जब इस कार्यक्रम में पहुंचे तो वहां मेहमानों को भोजन में बारहों तरह का व्यंजन परोसा गया। मंत्री जी खुद ही खुशी—खुशी दर्जनों व्यंजनों की फोटो लगाते रहे। उपर लगी तस्वीर भी मंत्री जी द्वारा शेयर की गयी तस्वीरों में से एक है। गौरतलब है कि हमारे देश में हर साल भंडारण के अभाव में ही 50,000 करोड़ रुपए यानी कुल खाद्यान्न उत्पादन का 40 फीसदी बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी केंद्र सरकार के मुताबिक ब्रिटेन के सालाना अनाज उत्पाद के बराबर है।  

ऐसे में सवाल बस यह कि फिर मोदी जी 'मन की बात' किस रिश्तेदार को सुनाते हैं, जब खुद वही करते हैं जो दूसरे पैसे वाले मंत्री, विधायक और पूंजीपति करते हैं। क्या उनकी नैतिक जिम्मेदारी नहीं कि ऐसे कार्यक्रमों का बहिष्कार करें और अपने रईस मंत्रियों को सबसे पहले भोजन बर्बादी करने से रोकें। ऐसे कार्यक्रमों में छप्पन भोग क्यों जरूरी हैं, जबकि 3—4 तरह के व्यंजनों से काम चल सकता है। 

हालांकि भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए कई प्रदेशों ने स्वाग्तयोग्य कदम भी उठाए हैं। जम्मू कश्मीर सरकार ने तो शादियों में भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए कानून तक बनाया है कि हर शादी में मीनू और खाने की मात्रा पहले ही तय कर ली जाए, ताकि खाना बर्बाद न जाए। वहीं सांसद रंजीत रंजन खाने की बर्बादी रोकने के लिए संसद में बिल पेश कर चुके हैं। 

मोदी अपने शहंशाह मानसिकता वाले मंत्रियों को बताएं कि देश का नब्बे फीसदी आमजन आज भी अपने बच्चे को रोज एक गिलास दूध नहीं दे पाता, बुंदेलखंड और विदर्भ रोज अपने बच्चे को दाल नहीं दे पाता और बंगाल, मध्यप्रदेश और उड़ीसा से लेकर उत्तर प्रदेश तक कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में आज भी टॉप में आते हैं।

क्या दिखावे की बजाए मोदी को जीवन में उतारने वाली मन की बात नहीं करनी चाहिए। सवाल यह इसलिए भी बड़ा है कि खाने का यह भव्य आयोजन वह मंत्री कर रहा है जो शहरी व गरीबी उन्मूलन के लिए जिम्मेदार है और उन्मूलन की हालत यह है कि आज की तारीख में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बहुतायत शहरी आबादी गरीब है और उसे दो जून का संतुलित भोजन तो छोड़िए, भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं है। 

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