Feb 17, 2017

चुनावों की महफिल में जाति ही हीरोइन है, बाकि सब साइड रोल में

70 साल में लोकतंत्र ने सबसे ज्यादा आकर्षण जाति में पैदा किया है फिर आकर्षित कोई और मुद्दा कैसे करेगा...

अजय प्रकाश

यूपी के महाराजगंज से गोरखपुर आयी पैसेंजर से उतरे कई लोगों से मेरी बात हुई। ज्यादातर लोग कैंडिडेट के हारने-जीतने का विश्लेषण जातिगत आधार पर कर रहे थे। उसमें सवर्ण-अवर्ण-मुस्लिम सभी थे।

धीरे-धीरे भीड़ बढ़ गयी। खुद को भीड़ से घिरता देख मैं सीढ़ियों पर चढ़ गया और पूछा, ''आज़ादी के 70 साल बाद भी वोट देने के लिए जाति ही क्यों उत्साहित और आकर्षित करती है।''

महाराजगंज के नौतनवां से आये छबीलाल राजभर ने बुलंद आवाज में कहा, ''70 साल में लोकतंत्र ने सबसे ज्यादा आकर्षण जाति में पैदा किया है फिर आकर्षित कोई और मुद्दा कैसे करेगा। हीरोइन तो ​हीरोइन होती है! चुनाव में जाति ही हीरोइन है, बाकि सब साइड रोल में हैं।'' 

छबीलाल गोरखपुर के रेती चौराहे पर एक साड़ी के दुकान में सेल्समैन का काम करते हैं। वह रोज कैंपियरगंज से गोरखपुर पैंसेजर से ही आते—जाते हैं। उनकी बात सुन कुछ युवा और दूसरे लोग सहमति जताते हैं।

इसी भीड़ से एक कुली की आवाज बाहर आती है और वह यह बोलते हुए निकल जाता है कि ''सर, यहां कुली जैसा छोटा काम भी जाति के बिना नहीं मिलता है, बड़े कामों   में तो हईए है।'' 

कुली बात सुन गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी और समाजशास्त्र से बीए कर रहे तीसरे साल के छात्र राकेश गौतम कुछ यों जाहिर करते हैं, ''कोई माने या न माने यहां जाति ही सबकुछ की निर्धारक है। इंसाफ पाना हो, नौकरी जुगाड़नी हो, अपराध कर जेल से छूटना हो, अस्पताल में मरीज भर्ती कराना हो, थाने में मुकदमा दायर कराना हो या फिर लेखपाल से जमीन की सही नापी करानी हो, सब जगह सबसे भरोसे के साथ जाति ही खड़ी होती है। विकास, सरकार, प्रशासन सिर्फ जुमले हैं, जो हर पांच साल बाद एक बार चुनाव में रिवाज की तरह दुहरा दिए जाते हैं।''

राकेश गौतम दलित जाति से हैं और वे खुद जातिवाद को खत्म करने के पक्ष में हैं। पर वह कहते हैं, चाहने और होने में बहुत फर्क है। यह समाज ही ऐसा है जहां बगैर जाति संरक्षण के आपको जीने नहीं दिया जाएगा। वह बताते हैं, ''गंभीर रूप से मेरी बीमार मां तबतक गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती नहीं की गयीं जबतक 'पासवान' नेता का फोन नहीं आ गया। और पासवान नेता ने इसलिए फोन किया, क्योंकि वह भी दलित हैं, मेरा गांव उनका समर्थक है और उनके इशारे पर वोट देता है।''

राकेश की बात सुन गोरखपुर के एक नजदीकी कस्बे पिपराइच से आने वाले शिक्षक रोहित त्रिपाठी कहते हैं, ''दलितों और पिछड़ी जातियों ने देश में जातिवाद से दुर्गंधित कर दिया है। यह विकास, शिक्षा, प्रशासन को नहीं देखते, सिर्फ जाति देखते हैं। दलितों को इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन खड़ा है, कैसा प्रत्याशी है,बस उन्हें हाथी का बटन याद है।'' 

रोहित​ त्रिपाठी की बात सुन एक आदमी ने भोजपुरी में पूछा, ''बाबू अपने के का कईल जाला।'' भोजपुरी में यह सम्मानजनक संबोधन कहा जाता है।

रोहित ने बताया कि वह गोरखपुर के रामगढ़ तालाब की ओर बने एक प्राइवेट डिग्री कॉलेज में शिक्षक हैं और वह काफी पढ़े—लिखे हैं। उन्होंने एमफिल और पीएचडी दोनों किया है। जैसे ही त्रिपाठी ने कॉलेज का नाम बताया, पूछने वाले आदमी ने कॉलेज की पूरी हिस्ट्री बता डाली। 

कॉलेज हिस्ट्री से पता चला कि रोहित जो कि खुद ब्राह्मण हैं, जहां पढ़ाते हैं वह एक ब्राह्मण माफिया का कॉलेज है और चपरासी से लेकर शिक्षक तक ज्यादातर ब्राह्मण हैं। ब्राह्मणों में भी त्रिपाठी—तिवारी ब्राम्हणों की तादाद ज्यादा है, क्योंकि माफिया—नेता इसी टाइटिल का है।

इस तथ्य पर रोहित त्रिपाठी थोड़े विचलित होते हैं पर बड़े ताव से कहते हैं, ''वह तो रिश्तेदारी और गांव वाली बात है इसलिए वहां त्रिपाठी ज्यादा हैं।'' 

भोजपुरी में सवाल करने वाले आदमी ने कहा, ''बबुआ तोहरे जातिवाद रिश्तेदारी और हमारा जातिवाद दुर्गंध। है न। पर ई रहते जातिवाद कभी न खत्म होगा। चुनाव की हीरोइन तभी बदलेगी जब आप वाला जातिवाद भी जातिवाद कहलाएगा, अभी तो वह विकास, प्रशासन और सरकार के नाम से जाना जाता है।' 

2 comments:

  1. थोड़ा विस्‍तार से लिखना था। जल्‍दी में निपटा दिए लगता है।

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  2. bahut sahi kaha sir apne.

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