Aug 8, 2011

‘रोडीज़’ के तीन नालायक़


रोडी बनने के लिए माँ-बहन की गालियाँ सुनाना ज़रूरी है। जैसे कि वे हर दूसरे मिनट में प्रतियोगियों की माँ और बहन के लिए निकालते हैं और बीप-बीप करके हमें उन गालियों का अहसास कराया जाता है...

इन्द्रजीत आजाद  

रघु, राजीव और रणविजय। सुने हैं आपने ये तीन नाम? चैनल बदलते वक़्त यदि दो टकलों के बीच में एक बालों वाला इन्सान आपको दिख जाए, तो समझिए यही हैं वे तीन नालायक़। बहुत सोचा कि इतने छिछोरे लोगों के बारे में लिखकर समय बर्बाद करूँ या नहीं।


फिर देखा, आजकल के युवाओं को उनके शो में जाने के लिए गिड़गिड़ाते हुए तो सोचा चलो, एक छोटा सा प्रयास करूँ। जो इन महानुभावों को नहीं जानते हैं, उनके लिए बता दूँ कि इनके नाम पर न जाएँ। ये बिलकुल भी रघु, रणविजय या राजीव जैसे व्यक्तित्व नहीं रखते हैं। ये एक रियलिटी शो का आठवाँ संस्करण बना रहें है, MTV रोडीज़ आठ।

रोडी बनने की पात्रताएँ है...
  • रोडी बनने के लिए माँ-बहन की गालियाँ सुनाना ज़रूरी है। जैसे कि वे हर दूसरे मिनट में प्रतियोगियों की माँ और बहन के लिए निकालते हैं और बीप-बीप करके हमें उन गालियों का अहसास कराया जाता है।
  • आपको समलैंगिकता (गे) को मान्यता देनी होगी। ऐसा ये टकले कई बार कहते सुने गए हैं कि समलैंगिकता सही है और प्रतियोगी द्वारा विरोध करने पर उन्हें गालियाँ मिलती हैं।
  • आपको भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अगर आपने भारत या भारत की संस्कृति की बात की, तो आप संस्कृति के ठेकेदार कहकर बाहर निकाल दिए जाएँगे।
ज़्यादा लम्बी लिस्ट नहीं लिखूँगा, सिर्फ़ इन्ही पंक्तियों को आधार बनाता हूँ। आज तक हमने अपनी इज़्ज़त व देश की ख़ातिर गोलियाँ खाना सीखा है। अब रोडी बनिए और अपनी माँ-बहन की गालियाँ सुनिए। मतलब, अब हमारे यहाँ बेहया बनाए जाएँगे, जिनकी माँ-बहनों की इज़्ज़त MTV के ये टकले स्टूडियो में नीलाम करेंगे और हमारे देश के कर्णधार सर झुकाकर अपनी माँ-बहनों को इनके सामने रख देंगे, क्योंकि उन्हें  रोडी जो बनना है।

आगे भी वो जो कुछ बनेंगे वो होगा समलैंगिक बनना, क्योंकि समलैंगिकता को मान्यता तो रोडीज़ के जज ही दे रहें है। रोडीज़ स्कूल के बच्चे तो उनका अनुसरण ही करेंगे और भारतीय संस्कृति को तो MTV के कूड़ेदान में ही डाल देंगे।


 वैसे भी भारतीय संस्कृति विवेकानंद, रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह और समर्थ रामदास पैदा करती है, बेहया माँ-बहनों की इज़्ज़त नीलाम करने वाले रोडीज़ नहीं। दुःख ये है कि  हमारी नयी युवा पीढ़ी के कुछ लोग क़तारबद्ध होकर कातर दृष्टि से इनके सामने दुम हिलाते रहते हैं। अब रोडी टाइप युवाओं से एक अपील है, ''मेरे बंधुओ! बेहयाई छोड़ो, देश के लिए गोली खाने का माद्दा रखो, गली नहीं । इन टकलों से माँ बहन की गाली खाने का नहीं। विवेकानंद बनो, भगत सिंह बनो, रामदास बनो। और अगर ये नहीं बन सकते तो इन्सान बनो,  बीमार नहीं।'

2 comments:

  1. mujhe is blog ki politics samajh me nhi aa rhi hai. kya yah vah sab kuch publish kar deta hai, jo bhi iske paas aata hai, ya phir iski koi vaicharik pristhbhoomi hai, kyonki aap ke blog pe kabhi jimmedaar partrakaarita ka aabhaas milta tha, par ab vah nhi dikh rha hai, kya aap aarakhshan v samlangikta ke virodh me hai? jo isko samarthan dete lekho ko publish kar rhe hai, kripya apna stand rakhiye.....

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  2. partner aapki politcs kya hai? pahle arakshan ke virodh me ab samlangikta ke virodh me.........is janjwar team me aakhir hain kaun kaun?

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