Jul 16, 2011

नए धमाके पर पुरानी सियासत

हर बार की तरह बयानबाजी,हल्ला-गुल्ला,गहमागहमी और मुआवजे आदि की फौरी कार्यवाही के अलावा कुछ नया होने वाला नहीं है। असल मे हमारे यहां आंतक को सरकार और सरकारी अमले ने एक खास समुदाय से जोड़कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली है...

आशीष वशिष्ठ

बुधवार 13 जुलाई को मुंबई में हुये सीरियल ब्लास्ट में  19 लोगों की मौत ने  सुरक्षा तंत्र की पोल-पट्टी तो खोली ही है, सरकारी दावों और बयानों की सच्चाई भी पूरे देश के सामने ला दी है। संसद पर हमले से लेकर ताजा बम ब्लास्ट तक हर बार आंतकी हमले के बाद सरकार ने आंतकवाद से सख्ती से निपटने के बयान तो जरूर जारी किये हैं, लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है।

सरकार चाहे जितने लंबे-चौड़े दावे और कार्यवाही का आश्वाशन दे,लेकिन आंतकी घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही हैं। 1993 से 2011 तक मुंबई बई पर पांच बार आंतकी हमले हुए हैं और इनमें लगभग मृतकों की संख्या लगभग 1658 और घायलों का आंकड़ा 700 के करीब है। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में देश भर में हुये आंतकी हमलों में मृतकों और घायलों का आंकड़ा हजारों में है।

असल में समस्या हमारे तंत्र और व्यवस्था की भी है। 8 दिसंबर 1989 को तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री डा0 रूबिया सईद का जम्मू कश्मीर लिबरेसन फ्रंट के आंतकियों ने अपहरण कर लिया था। रूबिया को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने पांच हार्ड कोर आंतकवादियों शेख अब्दुल हमीद, गुलाम नबी भट्ट, नूर मुहम्मद कलवल, मुहम्मद अल्ताम, और जावेद अहमद जरगर को 13 दिसंबर को आजाद किया था। इसी कड़ी में 24 दिसम्बर 1999 को इंडियन एयरलाइन्स के विमान आई सी 814को जिस तरह अपहरण करके कांधार ले जाया गया और जिस तरह सरकार ने हाई प्रोफाइल तीन आंतकवादियों मुषताक अहमद जरगर, अहमद उमर सैयद शेख और मौलाना मसूद अजहर को रिहा करके अपहरणकर्ताओं के समक्ष घुटने टेके उससे भारत के सॉफ्ट स्टेट होने का संदेश संपूर्ण विश्व में गया था।

दरअसल जब देश की आंतरिक सुरक्षा और जान-माल से जुड़े गंभीर मसले पर राजनीतिक दल और नेता रोटिया सेंकना और दहशतगर्दों के खिलाफ सख्त या कड़ी कानूनी कार्यवाही करने में हीला हवाली करना राजनीतिक इच्छाशक्ति और सरकार की नीति और नीयत में खोट को सिद्व करता है।

विश्व भर में इस्लाम के अलावा भी अनेक धर्मों और संप्रदायों का नाम आंतक से जुड़ा है,लेकिन हमारे यहां सबकुछ जानते समझते हुये भी आंतक को किसी धर्म या संप्रदाय से जोड़ना राजनीतिक दलों का कुचक्र और सत्ता हासिल करने का घटिया रास्ता है। बयानबाजी करके हमारे नेता चाहे जितना दहाड़े लेकिन हमारे कागजी शेर नेता वोट बैंक की राजनीति के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा और जान-माल से खिलवाड़ कर रहे हैं।

हर बार की तरह इस बार भी बयानबाजी,हल्ला-गुल्ला,गहमागहमी और मुआवजे आदि की फौरी कार्यवाही के अलावा कुछ नया होने वाला नहीं है। असल मे हमारे यहां आंतक को सरकार और सरकारी अमले ने एक खास समुदाय से जोड़कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली है। आम भारतवासी को तो रोजी-रोटी के फेर से ही फुर्सत नहीं है ऐसे में उसके पास किसी पर आरोप लगाने या फिर उंगली उठाने का वक्त ही नहीं है।

हमारे यहां राजनीतिक दल और नेताओं ने सत्ता सुख के लिए आंतकवाद को जाति और संप्रदाय से जोड़कर आंतक पर प्रभावी और सख्त कार्यवाही से परोक्ष व अपरोक्ष रूप में रोड़े अटकाए हैं। सीमापार से होने वाले आंतकवाद हो या फिर देश में फलते-फूलते आंतक पर प्रभावी रोक और कार्यवाही तभी लग सकती है जब राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल धर्म,जात और संप्रदाय की संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर देंखेगे।

मौजुदा समय में आंतकवाद की समस्या से विश्व के कई राष्ट्र ग्रस्त हैं। यह एक वैष्विक समस्या है जो दिनों दिन बदतर रूप लेती जा रही है। यद्यपि आंतकवाद की कोई सर्वमान्य व्याख्या दे पाना मुष्किल है। जिसक एक देश या किसी समाज द्वारा आंतकवादी का दर्जा दिया जाता है,उन्हें ही किसी अन्य देष या समाज में महानायक का दर्जा प्राप्त हो सकता है। आंतकवाद की उत्पति में कई कारणों यथा ऐतिहासिक, राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक कारकों का मुख्य योगदान है। दुनियाभर में हथियारों की सुलभ उपलब्धता, धन की पर्याप्त आपूर्ति, सैन्य प्रषिक्षण की वजह से आंतकवादियों का गहरा संजाल विकसित हो गया है। पिछले दो दशकों से आंतकवादी हिंसा की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्वि हुई है। कई सरकारों द्वारा आंतकवाद की चुनौती को स्वीकार करने पर उसे रोकने की मंषा के बावजूद, यह समस्या दिन प्रतिदिन जटिल एवं घातक होती जा रही है। भारत में ये समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है।

अफसोस जनक पहलू यह है कि मुंबई में हुये सीरियल ब्लास्ट के बाद एक बार फिर राजनीतिक दलों की बयानबाजी का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने यह बयान देकर कि ‘सभी हमलों को रोक पाना मुमकिन नहीं है। देश में 99 फीसदी आंतकी हमले रोक लिए गए है। ऐसा खुफिया तंत्र में सुधार की वजह से हुआ है। लेकिन सभी हमले रोक पाना मुश्किल है।’ राहुल के इस बयान ने आंतक से प्रभावितों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।

वहीं गृहमंत्री चिंदबरम ने जो कुछ भी मुंबई में मीडिया के समक्ष कहा वो भी देशभर ने सुना। जब देश का गृहमंत्री यह बयान दे रहा हो कि ‘भारत के हर शहर पर खतरा है’तो आम आदमी का भगवान ही मालिक है। ऐसे में जब जिम्मेदार ओहदों पर बैठे सज्जन बचकानी बयानबाजी और किसी ठोस और सख्त कार्यवाही की उम्मीद करना बेमानी ही होगा।



    स्वतंत्र पत्रकार और उत्तर प्रदेश के राजनीतिक- सामाजिक मसलों के लेखक.



 
 

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