May 31, 2011

विनायक के बाद अब पीयूष गुहा को मिली जमानत


पीयूष  की चिंता में मां-बाप दोनों मर गये। 2007  में हुई गिरफ्तारी के एक साल बाद पिताजी और फिर उसके एक साल बाद मां मर गयी। पीयूष को बड़ा दुख होगा कि उसके कारण मां-बाप मर गये...

अजय प्रकाश    

मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉक्टर विनायक सेन के सहअभियुक्त और आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कोलकाता के व्यापारी पीयूष गुहा को आज सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दे दी। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीष जीएस सिंघवी और सीके प्रसाद की एक अवकाश  प्राप्त खंडपीढ ने पीयूष गुहा के आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि इस मामले के तीसरे आरोपी और वरिष्ठ  माओवादी नारायण सान्याल अभी भी छत्तीसगढ़ की जेल में बंद हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007 में पीयूष गुहा को माओवादियों के संवदिया होने के आधार पर यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था। सरकार के इस आरोप को सही मानते हुए 2010में पहले छत्तीसगढ़ की निचली अदालत और फिर उच्च न्यायालय ने इस मामले के तीनों अभियुक्तों बिनायक सेन,पीयूष गुहा और नारायण सान्याल की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी थी।
बिनायक सेन और नारायण सान्याल

सरकार का आरोप था कि पीयूष गुहा,विनायक सेन और जेल में बंद वरिष्ठ माओवादी नेता नारायण सान्याल के बीच की कड़ी थे,जो माओवादी पार्टी की अंदरूनी फैसले और जानकारी को विनायक सेन के जरिये नारायण सान्याल तक पहुंचाते थे। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए दो लाख की जमानत और एक-एक लाख रूपये के मुचलके भरने के आदेश  के साथ पीयुश गुहा रिहा करने का आदेष दिया है। मानवाधिकार संगठन पीयूडीआर के सदस्य और असमिया प्रतिदिन के ब्यूरो चीफ आशीष  गुप्ता इसे सचाई की जीत मानते हुए कहते हैं,‘भविष्य में ऐसे गलत फैसले देने  की प्रवृति पर रोक लगेगी।'

अदालत में मौजूद रहे पीयूष गुहा  के भाई ओरूह गुहा  से जनज्वार  की  बातचीत

आजीवन कारावास की सजा काट रहे आपके भाई पीयूष  गुहा को सर्वोच्च न्यायालय से मिली जमानत पर आप क्या कहना चाहेंगे?

मेरे और परिवार के लिए बड़ी ख़ुशी  की बात है,लेकिन इस बात का दुख है कि एक निराधार मामले में हमें जमानत के लिए सर्वोच्च न्यायलय तक आना पड़ा। न्याय पाने की इस लंबी प्रक्रिया में परिवार को बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ीं।

कैसी मुसीबतें?
पीयूष  की चिंता में हमारे मां-बाप दोनों मर गये। 2007 में हुई गिरफ्तारी के एक साल बाद पिताजी और फिर उसके एक साल बाद मां मर गयी। पीयूष  को बड़ा दुख होगा कि उसके कारण मां-बाप मर गये।

इस बीच परिवार की माली हालत कैसी रही?

हमलोगों का धंधा तेंदुपत्ता और बीड़ी बेचने का था,जो पश्चिम  बंगाल के मुर्शिदाबाद  के सागोर पाड़ा गांव से चलता था। लेकिन पीयूष  की गिरफ्तारी के बाद व्यवसाय पूरी तरह बर्बाद हो गया क्योंकि उसे चलाने वाला कोई नहीं रहा।

आप इस जीत में किन लोगों का योगदान मानते हैं?

मानवाधिकार संगठन पीयूडीआर, पीयूसीएल और कोलकाता एपीडीआर अगर नहीं होते तो शायद हम अपने भाई को जमानत नहीं दिला पाते। प्रशन भूषण  और वृंदा ग्रोवर का बतौर वकील पीयूष के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय में खड़ा होना भी बेहद महत्वपूर्ण रहा।

क्या आपके भाई का माओवादियों के साथ कोई संबंध रहा है?

मैं ऐसा नहीं कह सकता,लेकिन जिस तरह सरकार माओवादियों को आतंकवादी बताने पर तुली है, हम ऐसा नहीं मानते।

1 comment:

  1. reeta kaunswal, pithauragarhTuesday, May 31, 2011

    nirdosh sabit karne ke liye kitna kuch gavana padata hai hamare loktantra men. bahut marmik baat kahi hai piyush guha ke bhai ne

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