Apr 25, 2011

बाघों के शिकार बनते ग्रामीण


वन क्षेत्रों में जो लोग जंगली जानवरों का शिकार हो रहे हैं उनकी सरकार नहीं सुन रही है। मीडिया भी चुप है क्योंकि सरकार और होटल-रेस्तरां मालिकों से विज्ञापन की टुकड़खोरी का सवाल है. इस हालात का जायजा ले रहे हैं रामनगर से...

सलीम मलिक  

उत्तराखंड  के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 121 पर रामनगर से करीब 14 किमी दूर सड़क के किनारे बसे सुन्दरखाल गांव में पिछले 12 नवम्बर से बाघों के हमले में अबतक 8 लोग मारे जा चुके  हैं। पहले से ही बदहाली की जिंदगी गुजार रहे सुंदरखाल के ग्रामीण एशिया के पहले नेशनल पार्क 'जिम कार्बेट' के चलते आयी इस नयी मुसीबत से दो-चार होने को मजबूर  हैं। पूरी दुनियां में जहां बाघों की तादात तेजी से घट रही है,वहीं कार्बेट नेशनल पार्क में और  इससे सटे इलाकों में बाघों की संख्या बढ़ रही है।

पर्यटकों   के इस अत्याचार का रेस्तरां वाले विशेष पॅकेज लेते
पिछली बार हुई बाघों की गणना के नतीजे तो वन्यजीव प्रेमियों को इतने मुफीद लगे थे कि उन्होने कार्बेट पार्क के इस इलाके को ‘बाघों की राजधानी’ जैसा शानदार नाम देने से गुरेज नही किया था। बाघों की इस गणना से उत्साहित वन्यजीव प्रेमियों की पहली चिन्ता यहां मौजूद बाघों की सुरक्षा के लिये है। बाघ विशेषज्ञों की मानें तो इस इलाके में उपलब्ध शिकार की अच्छी संख्या के चलते एक बाघ को अपने स्वच्छंद विचरण के लिये करीब 20 किलोमीटर का इलाका चाहिये।

अपनी इस टेरेटरी में बाघ आमतौर पर दूसरे बाघ का हस्तक्षेप किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करता। इलाके के वर्चस्व की इस लड़ाई में आमतौर पर बाघ आपस में ही भिड़ जाते हैं जिसमें से किसी के मैदान छोड़ने या प्रतिद्वंद्वी की मौत के बाद ही यह लड़ाई अपने मुकाम पर पहुंचती है। वैसे दिलचस्प बात यह है कि बाघ जहां अपने इलाके में दूसरे नर बाघ को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता, वहीं वह दो या तीन मादा बाघिन को अपने हरम में रहने की इजाजत देता है।

बाघों की बढ़ती आबादी के चलते उन्हें पार्क के अंदर वह प्राकृतिक एवं  स्वच्छंद वातावरण नहीं मिल रहा है जिसके की वह प्राकृतिक रुप से आदी है। इस कारण अब जगह की तंगी के चलते बाघों ने जंगल से निकलकर आबादी का रुख करना आरम्भ कर दिया है। ऐसी हालत में बाघों के आदमी पर हमले की घटनाओं में अचानक तेजी आ गई है।

बाघों के हमले में मारे गए लोग, जिनके विवरण उपलब्ध हो पाए :-
12 मार्च 2011  को सुंदरखाल में एक विक्षिप्त व्यक्ति
26 जनवरी 2011 को मालधन का युवक पूरन चन्द्र जो की सुंदरखाल रिश्तेदारी में आया था
10 जनवरी 20011 को गर्जिया की शान्ति देवी
31 दिसम्बर 2010 को सुंदरखाल देवीचौड़ की देवकी देवी
18 नवम्बर 2010 को चुकुम गांव की कल्पना देवी
12 नवम्बर 2010 को सुंदरखाल की ही नंदी देवी
फरवरी 2010 में सुंदरखाल की शान्ति देवी और ढिकुली निवासी भगवती देवी

पहले भी इस इलाके में बाघों का आदमी से आमना-सामना होता रहा है,लेकिन वह इतना कम था कि उसे अपवाद कहना ठीक होगा। लेकिन बीते साल  12नवम्बर को बाघ के हमले में मारी गई महिला के बाद तो इस क्षेत्र में बाघों के हमले बढ़ गये हैं। एक ही इलाके में बाघों के इन हमलों से जहां सुंदरखाल के ग्रामीण मौत के खौफ में जीने को अभिशप्त है,वहीं वन-विभाग से जुड़े अधिकारी भी परेशान हो गये है। इस साल की शुरुआत यानी 27जनवरी को बाघ के हमले में मारे गये युवक की मौत के बाद तो ग्रामीणों का गुस्सा वन-विभाग के प्रति अपने चरम पर था,जिसकी गम्भीरता को देखते हुये विभाग के अधिकारी तक मौके पर नहीं पहुंचे।

सिलसिलेवार हुई इन घटनाओं में हाल तक बाघ के हमले में अपनी जान गंवानें वालों की संख्या अधिकृत तौर पर आठ  हो चुकी है। अधिकृत इसलिये कि बाघ के हमले में मारे गये ग्रामीणों के बाद गांव वालों का ध्यान जब इस क्षेत्र में घुमने वाले विक्षिप्तों की ओर गया तो पता चला कि कई ऐसे विक्षिप्त लोग जो पहले क्षेत्र में ही घूमा करते थे,इन दिनों  दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे में गांव वालों का यह कहना भी है कि इस क्षेत्र के अनेक अज्ञात गायब विक्षिप्त भी बाघ का शिकार बन चुके हैं। विक्षिप्तों को लेकर कोई दावा नहीं करने वाला इसलिये उनके बारे में कोई शोर नहीं हुआ।

सुंदरखाल के ग्रामीण बीते चार दशकों से जंगलों पर ही आश्रित रहकर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। गांव में चाय की दुकान चलाने वाले विशाल का कहना है कि ‘पहले गांव वाले अक्सर अकेले ही जंगल चले जाया करते थे। बाघ जंगल के रास्ते में मिल जाता था तो आदमी का रास्ता छोड़ झाड़ियों में दुबक जाता था। या बाघ शिकार खा रहा है तो फिर आदमी ही अपना रास्ता बदल लेते थे। आदमी और बाघ के बीच यह अनोखा तालमेल इतना मजबूत था कि इक्का-दुक्का की संख्या में जंगल जाने से भी बाघों के हमले की घटनायें अपवादस्वरूप हुआ करती थीं।

वह क्षेत्र जहाँ लोग बाघों का शिकार हो रहे हैं
इसके अलावा एक और खास बात यह थी कि यदि बाघ ने हमला कर भी दिया तो वह आदमी को खाता नहीं था। जिसका अर्थ है कि बाघ ने आदमी को अपने आहार के लिये नहीं मारा, बल्कि अपनी या अपने बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से मारा। लेकिन अब इन ताजा घटनाओं में बाघ न केवल आदमी को मार रहा है, बल्कि उसे खा भी रहा है। इस बारे में बाघों के व्यवहार पर अध्ययन करने वालों की राय है कि जंगल में बढ़ रहा मानवीय हस्तक्षेप बाघों के व्यवहार में आ रहे परिवर्तन की मुख्य वजह है।

आमतौर पर शांत फिजाओं  का निवासी यह वन्यजीव अपने वासस्थल पर इंसानी दखल के चलते अपने प्राकृतिक व्यवहार से दूर होता जा रहा है। विशेषज्ञों की इस राय को आधार बनाकर वन महकमा जंगल में ग्रामीणों की आवाजाही को शत-प्रतिशत बंद करने पर तुला हुआ है, लेकिन कार्बेट नेशनल पार्क में सैलानियों के माध्यम से हो रही इंसानी घुसपैठ को रोकने या इसे नियंत्रित करने पर वन विभाग जोर नहीं देता है। कार्बेट नेशनल पार्क की स्थापना की प्लेटिनम जुबली के मौके पर यहां आयोजित अंतर्राष्ट्रीय टाइगर मीट में कार्बेट पार्क और कोसी नदी के बीच होने के चलते सुंदरखाल को ऐसा अवरोध माना गया जिसकी वजह से अपनी प्यास बुझाने के लिये पानी के पास जा रहे वन्यजीवों जीवों से आदमी का टकराव बढ़ रहा है।

लेकिन गर्जिया नदी के उत्तरी किनारे से ढिकुली के दक्षिणी हिस्से तक कुकरमुत्ते की तरह उग आये उन रिसोर्ट की कोई चर्चा नहीं हुई जिनके कारण लगभग पांच किमी की यह पट्टी पूरी तरह से कार्बेट पार्क और कोसी नदी के बीच ‘ग्रेट चाइना वाल’ बन गई है। इसके अलावा जंगल को नजदीक से जानने वाले विशेषज्ञों के अनुसार इस बार प्रदेश में आई आपदा के चलते पार्क के ढिकाला जोन में रामगंगा नदी में इतना मलवा आ गया है कि वहां पर ग्रासलैण्ड पूरी तरह से नष्ट हो गई है। ग्रासलैण्ड के अभाव में वहां से हिरन सहित घास पर जिंदा रहने वाली वन्यजीवों की वह प्रजाति जो कि बाघ का शिकार है, अपना स्थान बदल लिया है। जिसका सीधा असर वहां पर रहने वाले बाघों पर भी पड़ा है। इस मामले में ग्रामीणों का इन रिसोर्ट वालों के खिलाफ एक सीधा आरोप भी है।

ग्रामीणों के मुताबिक रिसोर्ट वाले अपने सैलानियों को बाघ की साइटिंग (दर्शन) कराने के लिये सड़क के किनारे कार्बेट पार्क के हिस्से में मांस के टुकड़े डालते हैं। जिस कारण यह बाघ मांस के लालच में यहां आ रहे हैं तथा मांस न मिलने के कारण जंगली शिकार के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान शिकार आदमी को अपना निशाना बना रहे है। वन्यजीवों पर गहरा अध्ययन करने वाले सुमांतो घोष भी मानते है कि आदमी बाघ की आहार सूची में कभी भी शामिल नहीं रहा।


 दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' में रिपोर्टर , उनसे   maliksaleem732@gmail.com    पर संपर्क किया जा सकता है.

2 comments:

  1. सलीम जी ने बहुत जरुरी रिपोर्ट लिखी है. आजकल मीडिया और सरकार हर उस उलटी- सीधी योजना का समर्थन करती है जिसमें दलाली का पैसा हो. इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए धन्यवाद. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पोखरियाल को इस खबर की एक प्रति भेज कर पूछनी चाहिए हे कवि ये क्या हो रहा है.

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  2. सरिता बिश्वासSunday, May 01, 2011

    बहुत अच्छी कहानी है , कभी इस नजरिये से भी बात हो तो समस्या का असल कारण समझ आये.

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