Feb 3, 2011

बोगियों से टपकते खून के बीच बेरोजगार


देश के 2.50 लाख युवा  मात्र  416 पदों के मांगे गए आवेदन जमा करने 11 राज्यों से उत्तर प्रदेश के आइटीबीपी भर्ती केंद्र पहुंचे थे,जहाँ से लौटने के दौरान बीस छात्रों  की मौत हो गयी.छात्रों की इस मौत के लिए क्या कोई जिम्मेदार नहीं ....  

प्रतिभा कटियार

शाहजहांपुर के पास हिमगिरी एक्सप्रेस धधक रही थी.वही हिमगिरी एक्सप्रेस जिसकी छत से गिरकर खबरों की मानें तो अब तक 19छात्रों की मौत हुई है.खौफ, खतरे की आशंका, आधी-अधूरी जानकारियों के साथ घटनास्थल से बस जरा सी दूरी पर बिताये वो पांच घंटे कभी नहीं भूलूंगी.

खबरें मिल रही थीं. बरेली सुलग रहा था. इस शहर से जब-तब धुआं उठता रहता है इसलिए मानो सबको आदत सी थी. इस बार धुआं इतना गाढ़ा होगा किसी को अंदाजा नहीं था

रोजगार का सपना आंखों में लेकर आये छात्रों में से कइयों को नौकरी के बदले मौत मिली.ट्रेन की छत पर से लाशें बरस रही थीं. पूरी बोगी खून से लाल थी. मदद करने वाला कोई नहीं. अपने साथियों को यूं मरते देख बाकियों का खून खौल उठा.एसी बोगी से यात्रियों को उतारकर आग लगा दी गई. मातम, गुस्सा, निराशा, हताशा का वो खौफनाक मंजर. उफ!

भर्ती के लिए गए छात्रों के लौटने की  व्यवस्था

क्या कुसूर था उनका,जो मारे गये.क्या कुसूर था उनका,जिन्हें रोजगार के लिए बुलाकर लाठियों से पीटा गया. ये सब अभ्यर्थी भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी)की भर्ती के लिए आये थे.क्या कुसूर था उनका कि उन्हें नौकरी के बदले मौत मिली.

प्रशासन कहता है कि उसे अंदाजा नहीं था कि इतने लोग आ जायेंगे.यानी वाकई प्रशासन को अंदाजा नहीं था कि इस देश में बेरोजगारों की कितनी बड़ी तादाद है. 416 पदों के लिए 11 राज्यों से ढाई लाख अभ्यर्थी. उन्हें वाकई अंदाजा नहीं था कि इस देश में कितने सारे युवाओं के लिए नौकरी एक ख्वाब है, जिसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. प्रशासन सचमुच कितना मासूम है.

लोगों का क्या है, वे तो मरते रहते हैं. इस देश की इतनी बड़ी आबादी में से कुछ लोग न सही. हमें ऐसे हादसों की आदत है.हम हादसों से जल्दी से उबर जाने का हुनर सीख चुके हैं.देखिये ना सब सामान्य हो रहा है.हादसे के बाद की सुबह यानी आज शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन इतना सामान्य था कि मानो कुछ हुआ ही न हो. 

इस हादसे के बाद रेल मंत्रालय, गृह मंत्रालय और यूपी सरकार  के बयानों के बाद  सोचती हूं दोष उन युवाओं का ही था शायद जिन्होंने अपनी आंखों में एक अदद नौकरी का ख्वाब बुना.जो ख्वाब जिसने जिंदगी ही छीन ली.ऐसा हादसा पहली बार नहीं हुआ है. जाहिर है आखिरी बार भी नहीं. हम अपनी गलतियों से कभी सबक नहीं लेते. हादसों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं.

....ओह मानव कौल का इलहाम तो छूट ही गया, जिसे देखने के लिए मैं जा रही थी. सॉरी मानव, आपके इलहाम पर अव्यवस्था का यह नाटक भारी पड़ा इस बार.


लेखिका और पत्रकार प्रतिभा  कटियार ने यह प्रतिक्रिया घटनास्थल से लौटकरअपने  ब्लॉग  प्रतिभा  की  दुनिया  पर  लिखा है. 





2 comments:

  1. behad sanvedansheel ho likha gaya hai, badhai ho

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  2. रूपा कुमारी, लखनऊThursday, February 03, 2011

    आखिर इस हादसे का कौन है जिम्मेदार, यही सवाल सभी का है. शर्म आती है ऐसे देश के नागरिक होने पर जहाँ जान गयी पर जिम्मेदारी किसी की नहीं.

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