Dec 25, 2010

विनायक सेन को समर्पित


आज हम भारी मन से आप सभी से मुखातिब हैं.जैसा कि मौजूदा सत्ता-समीकरण से अन्देशा था छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने डाक्टर विनायक सेन और दो अन्य लोगों को देश-द्रोह के आरोप में उमर क़ैद की सज़ा सुनायी है.

 

ज़ाहिर है कि मौजूदा सत्ताधारी -उनका रंग चाहे जो भी हो,भगवे से ले कर हरा और सफ़ेद -विनायक सेन को सलाख़ों के पीछे ही रखना चाहते हैं.इसलिए उन पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें क़ैद में रखे रहने की साज़िश की जा रही है.असलियत यह है कि डाक्टर विनायक सेन छत्तीसगढ़ में अत्यन्त लोकप्रिय हैं.उन्होंने न केवल वहां आदिवासियों और आम जनता को ऐसे समय चिकित्सा उपलब्ध करायी है जब सरकारी तन्त्र नाकारा साबित हुआ है,बल्कि आदिवासियों की हत्या करने वाले सरकार समर्थित गिरोह सल्वा जुडुम का कड़ा विरोध भी किया है.

ध्यान रहे कि जहां विनायक सेन जैसी मेधा और गुणों वाले डाक्टर समृद्धि की सीढ़ियों का सन्धान करते हैं वहां विनायक सेन ने स्वेच्छा से तकलीफ़ों वाला मार्ग चुना है.लेकिन सच्चे देशभक्तों को अक्सर देशद्रोही क़रार देकर सज़ाएं दी जाती रही हैं. इसलिए आज  हम तुर्की के महान कवि नाज़िम हिकमत की वह मशहूर कविता पेश कर रहे हैं जो उन्होंने तुर्की की तानाशाही द्वारा क़ैद किये जाने की दसवीं सालगिरह पर लिखी थी. यह कविता विनायक  को समर्पित करते हैं - नीलाभ  



जब से मुझे इस गड्ढे में फेंका गया

नाज़िम हिकमत

जब से मुझे इस गड्ढे में फेंका गया
पृथ्वी सूरज के गिर्द दस चक्कर काट चुकी है

अगर तुम पृथ्वी से पूछो, वह कहेगी -
‘यह ज़रा-सा वक़्त भी कोई चीज़ है भला!’
अगर तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा -
‘मेरी ज़िन्दगी के दस साल साफ़!’

जिस रोज़ मुझे कैद किया गया
एक छोटी-सी पेंसिल थी मेरे पास
जिसे मैंने हफ़्ते भर में घिस डाला।
अगर तुम पेंसिल से पूछो, वह कह कहेगी -
‘मेरी पूरी ज़िन्दगी!’
अगर तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा -
‘लो भला, एक हफ़्ता ही तो चली!’

जब मैं पहले-पहल इस गड्ढे में आया -
हत्या के जुर्म में सज़ा काटता हुआ उस्मान
साढ़े सात बरस बाद छूट गया।
बाहर कुछ अर्सा मौज-मस्ती में गुज़ार
फिर तस्करी में धर लिया गया
और छै महीने बाद रिहा भी हो गया।
कल किसी ने सुना - उसकी शादी हो गयी है
आते वसन्त में वह बाप बनने वाला है ।

अपनी दसवीं सालगिरह मना रहे हैं वे बच्चे
जो उस दिन कोख में आये
जिस दिन मुझे इस गड्ढे में फेंका गया।
ठीक उसी दिन जनमे
अपनी लम्बी छरहरी टाँगों पर काँपते बछेड़े अब तक
चौड़े कूल्हे हिलाती आलसी घोड़ियों में
तबदील हो चुके होंगे।
लेकिन ज़ैतून की युवा शाख़ें
अब भी कमसिन हैं
अब भी बढ़ रही हैं।

वे मुझे बताते हैं
नयी-नयी इमारतें और चौक बन गये हैं
मेरे शहर में जब से मैं यहाँ आया
और उस छोटे-से घर मेरा परिवार
अब ऐसी गली में रहता है,
जिसे मैं जानता नहीं,
किसी दूसरे घर में
जिसे मैं देख नहीं सकता।

अछूती कपास की तरह सफ़ेद थी रोटी
जिस साल मुझे इस गड्ढे में फेंका गया
फिर उस पर राशन लग गया
यहाँ, इन कोठरियों में
काली रोटी के मुट्ठी भर चूर के लिए
लोगों ने एक-दूसरे की हत्याएँ कीं।
अब हालात कुछ बेहतर हैं
लेकिन जो रोटी हमें मिलती है,
उसमें कोई स्वाद नहीं।

जिस साल मुझे इस गड्ढे में फेंका गया
दूसरा विश्वयुद्ध नहीं शुरू हुआ था,
दचाऊ के यातना शिविरों में
गैस-भट्ठियाँ नहीं बनी थीं,
हीरोशिमा में अणु-विस्फोट नहीं हुआ था।

आह, समय कैसे बहता चला गया है
क़त्ल किये गये बच्चे के रक्त की तरह।

वह सब अब बीती हुई बात है।
लेकिन अमरीकी डालर
अभी से तीसरे विश्वयुद्ध की बात कर रहा है।

तिस पर भी, दिन उस दिन से ज़्यादा उजले हैं
जबसे मुझे इस गड्ढे में फेंका गया।
उस दिन से अब तक मेरे लोगों ने ख़ुद को
कुहनियों के बल आधा उठा लिया है
पृथ्वी दस बार सूरज के गिर्द
चक्कर काट चुकी है...

लेकिन मैं दोहराता हूँ
उसी उत्कट अभिलाषा के साथ
जो मैंने लिखा था अपने लोगों के लिए
दस बरस पहले आज ही के दिन :

‘तुम असंख्य हो
धरती में चींटियों की तरह
सागर में मछलियों की तरह
आकाश में चिड़ियों की तरह
कायर हो या साहसी, साक्षर हो या निरक्षर,
लेकिन चूँकि सारे कर्मों को
तुम्हीं बनाते या बरबाद करते हो,
इसलिए सिर्फ़ तुम्हारी गाथाएँ
गीतों में गायी जायेंगी।’

बाक़ी सब कुछ
जैसे मेरी दस वर्षों की यातना
फ़ालतू की बात है।

_____________________________________________________

कवि परिचय - नाज़िम हिकमत (1902-63) की कविता तुर्की ही नहीं, दुनिया की सारी शोषित मानवता के दुख-सुख, कशमकश और संघर्ष को जुबां देती है.सभी सच्चे कवियों की तरह नाज़िम ने अपने देश की सतायी गयी जनता के हक़ में आवाज़ बुलन्द की थी और उन लोगों की गाथाओं को अपनी कविता में अंकित किया था जो उन्हीं के शब्दों में "धरती में चींटियों की तरह, सागर में मछलियों की तरह और आकाश में चिड़ियों की तरह" असंख्य हैं, जो वास्तव में सारे कर्मों के निर्माता हैं।

2 comments:

  1. भूपेंद्र, नॉएडाSunday, December 26, 2010

    नाजिम हिकमत को विनायक के बहाने पढ़ने के लिए नीलाभ और जनज्वार को बधाई. विनायक सेन जैसे समाजसेवी को बंद कर सरकार अपनी मर कम कर रही है.

    ReplyDelete
  2. दो अन्य लोगों को देश-द्रोह के आरोप में उमर क़ैद की सज़ा सुनायी है- नीलाभ जी - सुनते हैं आप ऊँचे दर्जे के सहसे कवि हैं. अक्सर सीमा आजाद और हेम पण्डे का नाम गुनगुनाते रहते हैं. लेकिन आप यहाँ दो और लोग लिखते हैं. क्या आप उन्ही का नाम लेंगे जिनके पीछे कोई आकार लगता हो. अरे भाई ये नाम हैं नारायण सान्याल और पीयूष गुहा. दोनों माओवादी पार्टी के हैं. इनका नाम लिखने में नीलाभ जी डर लगता है क्या, या आपको लग रहा है यह अछूत हैं और इनका नाम विनायक संगे ले लेंगे तो बेचारे विनायक प्रदूषित हो जायेंगे. हो सकता है इसके बाद आप कहें कि गलती से छुट गया तो आपका यह झूठ होगा. दोस्तों संघर्षों के इन अलगाववादियों से सावधान रहें ये आजकल हर जगह पाए जा रहे हैं क्योंकि आदिवासियों के डॉक्टर विनायक को ह्युमन राईट के बाजार ने परचेज कर लिया है, मगर वह नारायण सान्याल और पीयूष जैसे बंद हजारों का नाम नहीं ले सकता. सवाल है इन अछुतों का क्या होगा. नाजिम हिकमत को छापने वाले महोदय थोड़ी तो हिमाकत कीजिये.

    ReplyDelete