Dec 14, 2010

शहर में सफ़र


आपकी धर्मपत्नी की आवाज आती है और वो आपको घर के कामों में रुचि न दिखाने के लिए कोसती है कि आपने  टूटे हुए नल को ठीक कराने के लिए प्लम्बर को नहीं बुलाया। ये अलग बात है कि प्लम्बर सिर्फ सुबह 10से शाम 6बजे तक ही मौजूद होता है और उस समय आप ऑफिस में होते हैं...

हैनसन टीके

हम सभी  रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाओं का अनुभव करते हैं,जिससें कभी  बेइज्जत तो कभी खुद को कुंठित महसूस करते है। इसके पीछे कोई आम कारण भले ही न हो,पर हर दिन ऐसी घटनाओं का सामना करना ही पड़ता है। ऐसी घटनाएं यात्रा करते समय,घर पर,रेस्तरां में खाना खाते समय,पान या शराब की दुकान पर,यहां तक कि आप टेलीफोन की लाइन या कहीं और कभी भी घट सकती हैं।

दिल्ली में रहने वालों के लिए ऐसा होना स्वाभाविक है। यहां पर मैं साधारण जनता की बात कर रहा हूं,क्योंकि उच्चवर्ग के जीने के तौर-तरीके और रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में मैं कुछ नहीं जानता। आप जब सुबह-सुबह एक अच्छी नींद से उठते हैं तो चाहते हैं कि बाकी का दिन भी इसी सपने की तरह अच्छा हो।

इतने में रसोई से आपकी धर्मपत्नी की आवाज आती है और वो आपको घर के कामों में रुचि न दिखाने के लिए कोसती है,क्योंकि आपने रसोई के टूटे हुए नल को ठीक कराने के लिए प्लम्बर को नहीं बुलाया। ये अलग बात है कि प्लम्बर सिर्फ सुबह 10से शाम 6बजे तक ही मौजूद होता है और उस समय आप ऑफिस में होते हैं। फिर भी आपको सुनना पड़ता है,क्योंकि घर के मुखिया और पुरुष होने के नाते यह आपका कर्तव्य है।

बीबी का यह विचित्र बर्ताव टूटे हुए नल से शुरू होता है,लेकिन कहां जाकर खत्म होगा ये किसी को नहीं पता। ये तो सिर्फ शुरुआत है। तभी  अचानक आपकी पत्नी टूटे हुए नल से लेकर उस दिन के लिए आपको कोसना शुरू कर देती है जब आप शराब पीकर घर आये थे। चाहे उस शराब ने आपको पियक्कड़ न बनाया हो,फिर भी शराब की वजह से आपकी पत्नी की नाक पूरे समाज के सामने नीची जरूर हो जाती है,ऐसा उसका सोचना होता है।

 कभी-कभी तो वह ये तक कह देती है कि आपने मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा और उसकी आंखों में भरे आंसू आपको यह अहसास दिलाते हैं कि आपसे शादी करने से पहले वह कितनी खुश थी। उस समय इतना गुस्सा आता है कि उस पर जोर से चिल्लायें, लेकिन आप ऐसा कुछ नहीं करते क्योंकि आप जानते हैं कि चुप रहने में ही भलाई है। इसलिए अंदर ही अंदर किलसते रहते हैं और यहां से कुंठा का दौर शुरू होता है।

अगले ही पल जब आप देरी की वजह से नजदीकी मेट्रो स्टेशन तक जाने के लिए ऑटो रिक्शा लेने के बारे में सोचते हैं तो कोई भी ऑटो वाला रुकने को तैयार ही नहीं होता। फिर अचानक से एक ऑटो आकर रुकता है तो आपको लगता है कि जल्दी से बैठ जाऊं,लेकिन फिर याद आता है कि दिल्ली में ऑटो में लगे मीटर तो केवल नाम के हैं। इसके बाद शुरू होती है किराए के लिए बहस। ऑटो चालक तो दोगुना किराया मांगता है,लेकिन आप उसके साथ बहस करके बीच का कोई रास्ता निकाल लेते है,क्योंकि देर हो रही होती है। इसके अलावा आपके पास कोई और रास्ता नहीं होता।

ऑटो-रिक्शे में बैठते ही लगता है कि चलो अब ऑफिस समय पर पहुंच जाऊंगा। मैट्रो स्टेशन ऑटो में बैठे-बैठे दिख रहा है,मगर उसी पल ऑटो वाला ऑटो को गैस भरवाने के लिए दूसरी तरफ मोड़ लेता है। तब मन तो करता है कि उसे दो-चार गाली दे दें, लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आप एक सज्जन इंसान है और गाली-गलौच करना आपको शोभा  नहीं देता। इस समय आपके अंदर एक आग फूट रही होती है,जिसे चाहकर भी आप बाहर नहीं निकाल सकते और इसे चुपचाप पी जाते हैं।

घटनाओं का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता। मैट्रो में अनाउंसमैंट के बाद ट्रेन आती है और आप दरवाजे के बीच में जाकर खड़े हो जाते है,लेकिन जैसे ही दरवाजा खुलता है बाहर से अंदर आने वालों की भीड़ आपको अंदर की तरफ धकेल देती है। जब आप उनको धकेलने की कोशिश करते है तो आपको उनकी तरफ से अभद्र शब्द सुनाई देते हैं, लेकिन आप उस समय कुछ नहीं कर सकते क्योंकि दिल्ली में यह सब चीजें आम हैं।

ऑफिस की तरफ पैदल जाते हुए अचानक से एक कार सामने आकर आपका रास्ता रोक देती है और आपको दूसरा रास्ता लेने को मजबूर करती है। तब आपको लगता है कि क्या ये थोड़ा आगे या पीछे गाड़ी नहीं रोक सकता था। फिर दूसरे ही पल याद आता है कि वह क्यों रोकेगा,वह तो लाखों की गाड़ी में सफर कर रहा है,मेरी दो पहिए वाली गाड़ी उसको दिखाई थोड़े ही देगी। इस बात पर आपको गुस्सा आना लाजिमी है। मगर आपके लिए अच्छा होगा कि आप गाड़ी में बैठे व्यक्ति के साथ किसी तरह की कोई बहस न करें,क्योंकि ऐसा करना आपके लिए भैंस  के आगे बीन बजाने जैसा होगा।

सुबह-सुबह ऑफिस पहुंच लोगों की शुभकामनाएं लेकर और गरम चाय का प्याला पीकर आप अपने केबिन में बैठकर शांति महसूस करते हैं। आपको लगता है कि यही एकमात्र जगह है जहां कोई आपको परेशान नहीं करेगा, लेकिन फिर समय आता है स्टॉफ मीटिंग का। मीटिंग में आपका बॉस आपको उस गलती के लिए सबके सामने डांटता है जो आपने की ही नहीं है। आपको एकबारगी लगता है कि यह सब छोड़कर भाग जाऊं। फिर भी आप सुनते हुए खुद को समझाने लगते हैं कि बॉस तो बॉस होता है, उसमें गलती-सही नहीं होता।

तभी आपको लगता है मेरा फोन काफी समय से बज रहा है। आप फोन उठाते हैं और दूसरी तरफ से आवाज आती है ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ आपको लगता है कि सारा गुस्सा इस पर ही निकाल दूं, लेकिन फिर आप सोचते हैं कि यह कोई नयी बात थोड़ी है। दिल्ली में रहकर ऐसी घटनाओं का सामना करना तो आम बात है। इससे बेहतर यह है कि आप खुद ही अपना नाम बताकर पूछ लें कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं।

मैं जानता हूं कि जो भी बातें मैंने ऊपर लिखी है उसमें कुछ भी नया नहीं है। ये सारी घटनाएं आपके साथ हर रोज घटती हैं,लेकिन अगर आप हर दिन होनी वाली इन छोटी-छोटी बातों को दिन के खत्म होने पर याद करेंगे तो ये बाते आपको बहुत हास्यास्पद और मजेदार लगेंगी, जो आपको एक अलग-सा एहसास देंगी।
(अंग्रेजी से अनुवाद - विभा सचदेवा)


लेखक सीपीएम के सदस्य हैं और सामाजिक-राजनितिक मसलों पर लिखते हैं,उनसे hanskris@gmail.com   पर संपर्क किया जा सकता है.


2 comments:

  1. nicely written........realy at the end of the day these small thngs gives us happiness.....))))))))

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  2. साहिल गुलाटी, रोहतकThursday, December 16, 2010

    चुप्पी पर खूब कहा...बधाई हो हैनसन साहब. आपका लेख दिलचस्प है. मेरी बीवी से भी इसी लिए तकरार होती रहती है.आपने सिर्फ हमारी ही नहीं उन करोड़ों के दुःख आपने जुबां दी है जो पत्नियों के सताए हैं.

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