Sep 6, 2010

माओवादी कहलाना पसंद करूँगा !


जनज्वार  में छपे  लेख ‘लखीसराय फिल्म की सफलता और टीवी शो के बुद्धिजीवी' के कुछ अंशों  पर जीएन साईबाबा ने ऐतराज करते हुए एक टिप्पणी लिखी है,जो इस प्रकार से है...
जनज्वार के प्रिय साथियों,

जनज्वार ने मुझ पर आरोप लगाया गया है कि बिहार में माओवादियों द्वारा बंधक बनाए गए पुलिसकर्मियों में से एक  लोकस टेटे की हत्या पर मैंने अरुंधती  राय,स्वामी अग्निवेश और मेधा पाटेकर के खेद जताने के बाद खेद जताया.मेरे ऊपर लगाया गया यह आरोप आधारहीन है.मैंने दो सितंबर को लोकस टेटे की हत्या से पहले ही बीबीसी (हिंदी)और कुछ टीवी चैनलों से हुई बातचीत में माओवादियों से बंधक बनाए गए चारों पुलिसकर्मियों की हत्या न करने की अपील की थी.

मैंने इस बात पर अपनी राय जाहिर की थी कि माओवादियों को उनकी हत्या क्यों नहीं करनी चाहिए.

लोकस टेटे की हत्या की खबर मिलने के दो घंटे बाद ही मैंने बयान जारी करना शुरू कर दिया था,मुझे जो भी मिला मैंने उसे अपना बयान दिया.

‘जनज्वार’ ने मुझे माओवादियों का एक समर्थक बताने की कोशिश की है, लेकिन मुझे समर्थक शब्द से नफरत है. पत्रकार अर्नव  गोस्वामी को भी मुझे और बहुत से अन्य लोगों को माओवादियों को समर्थक बताना  अच्छा लगता है. लेकिन मैं एक ‘समर्थक’ होने की जगह ‘माओवादी’ होना ज्यादा पसंद करुंगा है.  समर्थक कहने से ऐसा लगता है कि कोई मुझे दलाल, टहलुआ या बिचौलिया कहकर बुला रहा है.

मुझे उदारवादी बुद्धिजीवियों से  जो कि आज के समाज के बारे में अच्छी समझ रखते हैं,उनकी अपील से भाकपा (माओवादी) अगर सबक लेती है तो  इसमें कोई समस्या नजर नहीं आती है. खासकर उन बुद्धिजिवियों की तुलना में जो कि महान मार्क्सवादी होने का दंभ तो भरते हैं लेकिन आज के समय की समस्याओं के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं.

शुभकामनाओं के साथ

जीएन साईबाबा

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