ये हैं तूफान
रिक्शा चलाते हैं। बताते हैं कि इनका जिस दिन जन्म हुआ उस दिन भयंकर आंधी-पानी आया था, इसलिए फूफा के बेटे ने इनका नाम तूफान रख दिया।
इनके साथ मैं बिहार के छपरा शहर की गलियां घूमता रहा, जिन गलियों से गुजरते हुए मैं 10वीं तक पढ़ा और बड़ा हुआ।
हम नदी किनारे साधुलाल हाई स्कूल के पास गए। उसकी दीवार से लगे एक प्राइवेट छोटा सा स्कूल है, नाम है लक्ष्मण लाल, उसी में मैं पहली बार अपने गांव से शहर में 6वीं में पढ़ने आया था। वह जैसा तब था अभी भी वैसा ही है, कुछ कमजोर टाइप, दबा - दबा सा।
अलबत्ता स्कूल के दाहिने 10 कदम पर कूड़ेदान बन गया है। बड़ा सा कूड़ेदान।
कूड़ेदान से आगे दर्जनों की संख्या में सुंदर झोपड़ियां दिख रही थीं। मैंने तूफान से कहा चलो उधर चलते हैं, नदी भी दिख रही है करीब में। मैं बचपन में अक्सर बाबूजी के साथ नदी नहाने जाता था, उसकी भी यादें ताजा हो जाएंगी।
तूफान बोला, सर उधर काहेला जाएंगे। सब दारू की भट्टी है, अच्छा नहीं है जाना। सब खतरनाक जगह है, जाने से का फायदा। झोपड़ियों की ओर आते-जाते लोगों को मैं कुछ देर देखता रहा तो ज्यादातर दारू पिये हुए लगे।
स्कूल से 10 कदम पर कूड़ेदान और 150 से 200 कदम पर दर्जनों दारू की भट्टियां, वह भी शहर में, ये कैसा सुशासन है। क्या ये बातें जिला प्रशासन को नहीं पता होंगी या स्कूल प्रशासन कभी कहता न होगा? समझ में नहीं आता कि रातों-दिन हिन्दू - मुसलमान और जाति-धर्म पर बहस करने वालों के लिए ये सब सवाल क्यों नहीं बनते, इन बातों को लोग अपने इलाकों का सबसे बड़ा सवाल क्यों नहीं बनाते ?
तूफान मुझसे बोले, 'ये सब पता करके आप का करेंगे?'
मैंने कहा, लिखेंगे...
तूफान, 'ई सब पढ़ता है कि आप लिखेंगे। कौनो फायदा नहीं होगा, लिखके रख लीजिए। भगाने से भागेगा का कि लिखने से। भगाने के लिए एकता चाहिए, ताकत चाहिए और प्रशासन चाहिए। ये सब कुछ इन्हीं सबों के पास है, आपके - हमारे पास क्या है? आपको भरोसा नहीं हो तो मेरे साथ थाने चलिए, आपको ही`
बिठा लेगा 5 घंटा, हाथ जोड़कर भाग जाएंगे...आदमी का सब सुधार का सोच घुसिएगा जाएगा?
मैंने पूछा, ' कहाँ पर ?'
तूफान बोला, ' बैठिए रिक्शा पर, आप भी बहुते मजाकिया नू हैं।'