Aug 14, 2019

तूफान बोला, ' बैठिए रिक्शा पर, आप भी बहुते मजाकिया नू हैं '

ये हैं तूफान
रिक्शा चलाते हैं। बताते हैं कि इनका जिस दिन जन्म हुआ उस दिन भयंकर आंधी-पानी आया था, इसलिए फूफा के बेटे ने इनका नाम तूफान रख दिया।
इनके साथ मैं बिहार के छपरा शहर की गलियां घूमता रहा, जिन गलियों से गुजरते हुए मैं 10वीं तक पढ़ा और बड़ा हुआ।
हम नदी किनारे साधुलाल हाई स्कूल के पास गए। उसकी दीवार से लगे एक प्राइवेट छोटा सा स्कूल है, नाम है लक्ष्मण लाल, उसी में मैं पहली बार अपने गांव से शहर में 6वीं में पढ़ने आया था। वह जैसा तब था अभी भी वैसा ही है, कुछ कमजोर टाइप, दबा - दबा सा।
अलबत्ता स्कूल के दाहिने 10 कदम पर कूड़ेदान बन गया है। बड़ा सा कूड़ेदान।
कूड़ेदान से आगे दर्जनों की संख्या में सुंदर झोपड़ियां दिख रही थीं। मैंने तूफान से कहा चलो उधर चलते हैं, नदी भी दिख रही है करीब में। मैं बचपन में अक्सर बाबूजी के साथ नदी नहाने जाता था, उसकी भी यादें ताजा हो जाएंगी।
तूफान बोला, सर उधर काहेला जाएंगे। सब दारू की भट्टी है, अच्छा नहीं है जाना। सब खतरनाक जगह है, जाने से का फायदा। झोपड़ियों की ओर आते-जाते लोगों को मैं कुछ देर देखता रहा तो ज्यादातर दारू पिये हुए लगे।
स्कूल से 10 कदम पर कूड़ेदान और 150 से 200 कदम पर दर्जनों दारू की भट्टियां, वह भी शहर में, ये कैसा सुशासन है। क्या ये बातें जिला प्रशासन को नहीं पता होंगी या स्कूल प्रशासन कभी कहता न होगा? समझ में नहीं आता कि रातों-दिन हिन्दू - मुसलमान और जाति-धर्म पर बहस करने वालों के लिए ये सब सवाल क्यों नहीं बनते, इन बातों को लोग अपने इलाकों का सबसे बड़ा सवाल क्यों नहीं बनाते ?
तूफान मुझसे बोले, 'ये सब पता करके आप का करेंगे?'
मैंने कहा, लिखेंगे...
तूफान, 'ई सब पढ़ता है कि आप लिखेंगे। कौनो फायदा नहीं होगा, लिखके रख लीजिए। भगाने से भागेगा का कि लिखने से। भगाने के लिए एकता चाहिए, ताकत चाहिए और प्रशासन चाहिए। ये सब कुछ इन्हीं सबों के पास है, आपके - हमारे पास क्या है? आपको भरोसा नहीं हो तो मेरे साथ थाने चलिए, आपको ही`
बिठा लेगा 5 घंटा, हाथ जोड़कर भाग जाएंगे...आदमी का सब सुधार का सोच घुसिएगा जाएगा?
मैंने पूछा, ' कहाँ पर ?'
तूफान बोला, ' बैठिए रिक्शा पर, आप भी बहुते मजाकिया नू हैं।'

Feb 10, 2018

अक्सरहां युवा मिलते हैं जो कहते हैं कि हम शाहिद बनना चाहते हैं

सामाजिक कार्यकर्ता मसीहुद्दीन संजरी की नज़र में शाहिद आज़मी
11,फरवरी 2010 को कानून और साम्प्रदयिक सदभाव का खून करने वालों ने शाहिद आज़मी को शहीद कर दिया। शाहिद आतंकवाद के नाम पर फंसाए जा रहे बेकसूर मुस्लिम युवकों के मुकदमें देखते थे और कई बार उन ताकतों के मंसूबों का खाक में मिला दिया था जिनकी साज़िश की वजह से सैकड़ों मुस्लिम नौजवानों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था।


शाहिद ने बेकसूर युवकों की कानूनी लड़ाई को अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लिया था। एलएलएम करने के बाद उनके मामू उन्हें एक मशहूर के वकील के पास लेकर गये ताकि उनका भांजा अच्छा प्रशिक्षण लेकर खूब पैसा कमाए लेकिन आज़मी का इरादा कुछ और था। इस रास्ते पर चलने में आने वाले सम्भावित खतरों से भी शायद वह वाकिफ थे। इसीलिए उनकी मां जब उनसे शादी करने की बात करतीं तो वह मुस्करा कर टाल देते थे।

शाहिद आज़मी मूल रूप से आज़मगढ़ के इब्राहीमपुर गांव का रहने वाले थे। उनके पिता अनीस अहमद पत्नी रेहाना अनीस के साथ मुम्बई के देवनार क्षेत्र में रहकर अपनी अजीविका कमाते थे। बचपन में ही पिता अनीस अहमद का देहान्त हो गया। शाहिद आज़मी ने पंद्रह साल की आयु में दसवीं की परीक्षा दी।

अभी नतीजे भी नहीं आए थे कि कुछ राजनितिज्ञों को कत्ल करने की साजिश के आरोप में उन्हें टाडा के तहत गिरफतार कर लिया गया। जेल में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और कानून की डिगरी हासिल की। उन्हें पांच साल की सजा भी हुई परन्तु बाद में सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए। जेल से रिहा होने के बाद एक साल का पत्रकारिता का कोर्स करने साथ ही एलएलएम भी किया। कुछ समय एडवोकेट मजीद मेमन के साथ रहने के बाद अपनी प्रेक्टिस करने लगे।

शाहिद आज़मी का नाम उस वक्त उभर कर सामने आया जब उन्होंने 2002 के घाटकोपर बस धमाका, मुम्बई के 18 आरोपियों में से 9 को डिस्चार्ज करवा लिया बाद में बाकी 8 आरोपियों को भी अपर्याप्त साक्ष्यों के कारण टाडा अदालत ने बरी कर दिया। इस घटना के एक आरोपी ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में ही हत्या कर दी गई थी।

शाहिद आज़मी 11, जूलाई 2006, मुम्बई लोकल ट्रेन धमाका, मालेगांव कबरस्तान विस्फोट और औरंगाबाद असलेहा केस के आरोपियों के वकील थे। यही वह जमाना था जब देश में एक साम्प्रदाकि-फासावादी शक्तियों द्वारा यह सघन अभियान चलाया जा रहा था कि कोई अधिवक्ता आतंकवादियों का मुकदमा नहीं देखेगा। इस समय तक आतंकवादी होने का अर्थ होता था मुसलमान होना। देश के कई भागों में ऐसे अधिवक्ताओं पर हिंसक हमले भी हुए थे।

बेंगलुरू में सैयद कासिम को शहीद भी कर दिया गया था। ऐसे वातावरण में यह साहसी नौजवान महाराष्ट्र के बाहर बंगाल समेत देश के कई भागों में जाकर अपनी कानूनी मदद देता रहा। अपनी शहादत से कुछ दिनों पहले ही बहुत गम्भीर मुद्रा में अपने परिजनों और मित्रों से शाहिद ने कहा था कि वह एक ऐसी योजना पर काम शुरू करने जा रहा है जिसके नतीजे में बेकसूरों पर हाथ डालने से पहले एजेंसियों को सौ बार सोचना पड़ेगा।

2006 और 2007 के बीच एडवोकेट शाहिद आज़मी को अज्ञात लोगों की तरफ से धमकी के फोन मिले थे। उन्होंने स्थानीय पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज करवाई थी। उन्हें सेक्योरिटी भी दी गई थी लेकिन कुछ ही दिनों बाद वापस ले लिया गया। 26, नवम्बर 2008 के मुम्बई पर हुए आतंकी हमले में जब पहले से ही जेल में बन्द फहीम अंसारी और सबीहुद्दीन अंसारी को घसीटा गया तो शाहिद आजमी उनके वकील हुए।

इस हमले के पाकिस्तानी अभियुक्त अजमल कसाब के वकील के पी पवार को ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा दी गई परन्तु इसी मुकदमें से जुडे़ दूसरे अधिवक्ताओं की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की गई। शाहिद आज़मी कमेटी फार प्रोटेक्षन आफ डेमाक्रेटिक राइट्स (सीडीपीआर) सदस्य होने के साथ ही इंडियन असोसिएशन आफ पीपुल्स लाएर से भी जुड़े हुए थे। शाहिद आज़मी खुश मिज़ाज स्वभाव का था।

यही कारण था कि उनके विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। मुम्बई की सरकारी वकील रोहिनी जो कई मुकदमों में शाहिद के खिलाफ वकील थीं, ने इसकी कड़े शब्दों में निन्दा करते हुए अपनी संवेदना व्यक्त की थी।

शाहिद नहीं रहा, पर देश में वो युवाओं का एक आइकन है. अक्सरहां युवा मिलते हैं जो कहते हैं की हम शाहिद बनना चाहते हैं.