tag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post8899324143892117887..comments2023-07-14T09:31:39.420-04:00Comments on जनज्वार ब्लॉग : सरकार आदिवासियों से माफी मांगेUnknownnoreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-77030652734539677242009-11-12T10:18:40.314-05:002009-11-12T10:18:40.314-05:00सलवा जुडुम एक स्वत: स्फूर्त आन्दोलन की तरह पनपा था...सलवा जुडुम एक स्वत: स्फूर्त आन्दोलन की तरह पनपा था .galat bat hai.rajeev ranjan prasad ji is tarah ki baat har soshak karta hai aapne nai baat nahi rakhi hai aur shoshan adhaar par jeevon ka jeevan chalta hai dhanyvaadRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-78029387568021171822009-11-12T03:54:22.530-05:002009-11-12T03:54:22.530-05:00अजय जी बस्तर में ही जीवन गुजरा है वहीं पढा-बढा हूँ...अजय जी बस्तर में ही जीवन गुजरा है वहीं पढा-बढा हूँ और पूरी तरह से जानता हूँ कि आप सिक्के का केवल एक पहलु ले कर खडे हुए हैं। आदिवासी सरकार से त्रस्त है सच है आदिवासी माओवादियों से त्रस्त यह यह भी बडी सच्चाई है और माओवादी आतंकवादी है जो बस्तर के आदिमों का स्वत: स्फूर्त आन्दोलन नहीं बल्कि आन्ध्र और बंगाल से आयातित आतंकवादी हैं। आप आंकडो की बात करंगे तो माओवादियों के ध्वस्त किये लाखों स्कूलो, संस्थानों, संपत्ति, बुनियादी सुविधाओं का व्योरा मैं प्रस्तुत कर सकता हूँ लेकिन बहस यह नहीं है। बहस यह है कि गृह युद्ध के पैरोकार लोग किस तरह लोकतंत्र की जडे लोक के नाम पर ही खोखली कर रहे हैं। <br /><br />जगदलपुर पी. जी कॉलिज से मैं ग्रेजुएट हुआ और आदिवासी छात्रावास में ही रहता था। उनके भीतर इस क्षेत्र को रेहन बना लेने की जो छटपटाहट है अच्छी तरह जानता हूँ। वे भी विकास चाहते हैं और एक बेहतर जिन्दगी लेकिन उनके लिये न तो बस्तर में रोजगार के अवसर एन. जी. ओ और बुद्धिजीवी + माओवादी संयुक्त मिल कर पैदा होने देना चाहते हैं और न ही बस्तर के बाहर उनका भविष्य है। <br /> <br /><br />एक और बात; सलवा जुडुम एक स्वत: स्फूर्त आन्दोलन की तरह पनपा था और दसियों भूमकाल आन्दोलनों का प्रणेता बस्तर का आदिवासी मुहताज नहीं है और इस आंदोलन द्वारा उसने माओवादियों को चेतावनी ही दी थी कि जाओ हमें चैन से जीने दो हां इस आन्दोलन को बरबाद किया राजनीतिक हस्तक्षेप नें और उस दुश्प्रचार नें जिसके लिये मार्क्सवादी कौम जानी जाती है। सच तो बेचारा मर ही गया। मेरा आज भी मानना है कि जिस दिन बस्तर का आदिम संगठित हो कर उठ खडा हुआ माओवादी औकात में होंगे (उनके समर्थक भी)। <br /><br />बस्तर उन शुभचिंतकों के आगे करबद्ध है जो उसकी गला रेत कर हत्या कर रहे हैं चाहे वह कलम से ही क्यों न हो...?राजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com