tag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post2961213061424806281..comments2023-07-14T09:31:39.420-04:00Comments on जनज्वार ब्लॉग : दुकान में क्रांति के दस सालUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-6192270606697779002010-08-24T01:23:21.476-04:002010-08-24T01:23:21.476-04:00अब कात्यायनी को इसका जवाब देना चाहिये…अगर स्मारिका...अब कात्यायनी को इसका जवाब देना चाहिये…अगर स्मारिका वाली बात ग़लत है तो उसका खण्डन किया जाना चाहिये…वैसे यह उन संस्थानोंख़ के रिकार्ड में उपलब्ध होगा कि कितना विज्ञापन दिया गया? विज्ञापनों के ज़रिये हुई कमाई और सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये छापे गये आह्वान के अंको की ख़बर अगर सच है तो यह धौंस-डपट से साहित्यिक बिरादरी को कट्रोल करने वाले इस गिरोह की कलई खोलने के लिये काफी होना चाहिये…उम्मीद की जानी चाहिये कि गाली-गलौज़ और धमकियों से ऊपर उठ कर यह कुनबा कोई ठोस जवाब देगा…Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-64836319360921694472010-08-23T14:14:28.797-04:002010-08-23T14:14:28.797-04:00कात्यायिनी जी,
अब बुद्धिजीवी और आपके भाषा में &qu...कात्यायिनी जी,<br /><br />अब बुद्धिजीवी और आपके भाषा में "भगोरो" को गाली देने से कोई फ़ायदा नहीं. जिस भाषा, शैली, पद्धति और राजनेतिक-संस्कृति का आपलोग आजतक निर्माण और प्रयोग करते रहे (अक्सर अपने "दुश्मनों" - और बिरादराना संगठनो के खिलाफ भी) आज आप लोग उसी का शिकार हो चुकें हैं. जनज्वार के ज्यादातर लोगों ने व्यक्तिगत "गाली" गलोज के सहारे बात करना तो आप लोगो से ही सिखा है! खेर , उनकी गालिओं के पीछे की दर्द को आप कभी समझ ही नहीं पाए. अगर हम आज तक गाली -गोलोज से भरपूर आपके पत्रिकाओं को पड़ते रहे (ये सोचकर की गालिओ के पीछे भी एक राजनेतिक आलोचना हो सकता है) - तो हम जनज्वार को भी पढ़ेंगे. और थोडा सा भी नेतिक साहस आप लोगो में अभी भी है तो इन साथियों द्वारा उठाये गए प्रश्नों का जवाब दे.<br /><br />और कृपया करके लेनिन का "राजनेतिक लाइन का आलोचना" वाला ढोंग न रचे. आपने अपने पुरे करियर में जिस तरह से हर किसी संगठन को गाली दिया है - वह किसी लेनिनवादी सोच का परिचायक तो नहीं लगता. "एन. जी . ओ: एक भयंकर साम्राज्यवादी कुचक्र" वाले किताब में क्या आपने "पि. एस. यु" करके एक संगठन को भरपूर व्यक्तिगत गाली नहीं दिया है? क्या उसमे आप लोगो ने उस संगठन का कौन सा लीडर कौन सा एन. जी. ओ. में काम करता है -और किस तरह से वे परिवार वादी है, साम्राज्यवाद का दलाल है - ये सब चर्चा नहीं किया है (वो लेख मिनाक्षी की नाम से छपा था) ? अब देखना ये है की सत्यम के बारे में आपको क्या कहना है ? ये केसा नीति है "अपने लिए कुछ और मापदंड और दुसरो के लिए कुछ और"? लगता हे "गेर-लोकतान्त्रिक" इस समाज के एक पुरोधा "चाणक्य" से आप लोगो ने काफी कुछ सिखा है! (वेसे राजनेतिक आलोचना में आप लोग serious होते तो नीलाभ जी का पत्र का जरुर जवाब देते. वेसे देते भी तो केसे- पितृसत्ता के बारे में आपका कोई समझ होता तभी न!)<br /><br />और "प्रोबोधन" की तो आप बात ही न करें तो बेहतर है. प्रोबोधन-आधुनिकता का आपलोगों का कितना समझ है वो तो आपके पितृसत्तात्मक मुहावोरो को पढने से ही पता लगता है (पेंट गीली हो जाना, बीवी से डरना, पेटीकोट-बाज, मौगा, सम्लेगिगता का विरोध...उसका मजाक बनाना...). इन पितृसत्तात्मक सोच और संस्कृति की विरोध तो "बुर्ज्जुआ नारीवादी " आज से चार दशक पहले ही कर चुकें हैं. और वो भी काफी सफल तरीके से - पच्छिम के देशो में. साम्यवादी होने के नाते आपको तो इनसे और आगे जाना चाहिए था. बुर्जुआ प्रोबोधन की मूल्यों को तो आप अभी हजम नहीं कर पाए; चले समाजवादी प्रोवोधन की बात करने. औकात तो देखो इनका. आपके ही पद्धति का प्रोयोग करे तो ऐसा लगता है- इस अहंकार के पीछे आपके दबंग जाती से belong करना - इसका जरुर कोई ताल्लुक है! ये पढके किस लगा- जरुर बताइयेगा!kabir chatterjeenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-16751195426708676222010-08-23T14:08:57.143-04:002010-08-23T14:08:57.143-04:00koi katyayini ka phone no. batao.main usase hisab ...koi katyayini ka phone no. batao.main usase hisab magunga. uske sangathan valon ne hamse bahut paisa men vasula hai. jab vah pani pike lagatar do ghante bolati thi to mujhe bhi lagta tha kuch dikkat hai, ab samajh men aaya. uska no. bhejen to main khabar lun ki tumharee politics kya hai partner. janardan aapka likha padhakar mera dil bhar aaya, main aapke sath hun. <br /><br />devendra singh<br />patnadevendra singhnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-46181912601184681732010-08-23T13:55:54.542-04:002010-08-23T13:55:54.542-04:00'कात्यायनी जब गोरखपुर जाती हैं तो अनुराग बाल ट...'कात्यायनी जब गोरखपुर जाती हैं तो अनुराग बाल ट्रस्ट के बच्चों में यह माहौल बनाया जाता था कि बहुत बड़ी नेता आ रही हैं.मीट-मुर्गे का प्रबंध होता था'- बहुत अच्छा लेकिन जहाँ जाकर कात्यायिनी मुर्गा खाती हैं वहां जिस दलित महिला का घर कब्जाया है उसके बारे में कोई बताओ भाई. याद है कि उसने इनके ऊपर एससीएसटी के तहत मुक़दमा भी कराया था. आह्वान का दफ्तर उसी में अभी भी है या बदल गया. पहले दलितों के घर पर कब्ज़ा और अब दलितों को गाली, यह कैसी कवयित्री है.<br />प्रमोद, गोरखपुरप्रमोद, गोरखपुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-32673552021748340802010-08-23T13:41:34.568-04:002010-08-23T13:41:34.568-04:00इसी बार के दिल्ली में लगे विश्व पुस्तक मेले में ब...इसी बार के दिल्ली में लगे विश्व पुस्तक मेले में बंगाल के एक वामपंथी नेता ने शशि प्रकाश से पूछा कि आपके संगठन पर आरोप लगता रहा है कि आपलोग लोगों के घरों पर कब्ज़ा करते हैं, जमीन कब्जाते हैं और संपत्ति इकट्ठी करते हैं. इस पर शशि प्रकाश ने कहा 'हाँ कब्जाते हैं और बन्दूक की नोक पर कब्जाते हैं. जो ऐसा कह रहे थे उनसे कह देना जो चाहे वह कर लें.'- अपने को वामपंथी नेता कहने वाले शशि प्रकाश का फिल्म 'घोसला का खोसला' के विलेन के जैसे जवाब देना क्या जाहिर कर्ता है. आख़िरकार टक्कर लेने वाले सामने आ ही गए. शशि प्रकाश कहा गयी तुम्हारी बन्दूक अब तो निकल ले नहीं तो दुकान में मंदी आ जाएगी.आशुतोष कुमार, हल्द्वानीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-31166691779235196702010-08-23T12:42:44.376-04:002010-08-23T12:42:44.376-04:00कात्यायनी तथा उनके साथियों का ऐसा काम अभी तक साहित...कात्यायनी तथा उनके साथियों का ऐसा काम अभी तक साहित्यिक बिरादरी में अनदेखा रह गया है. जाने कैसे? <br /><br />anuragAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7405511104012700211.post-51762513439904833232010-08-23T09:32:39.331-04:002010-08-23T09:32:39.331-04:00यार यह तो अमानवीयता की हद है, अब तो वामपंथी संगठनो...यार यह तो अमानवीयता की हद है, अब तो वामपंथी संगठनों को और उनसे जुड़े बुद्धिजीवियों को इनसे सवाल करना चाहिए कि अब यह सामूहिक तौर पर जवाब दें.चिंतामणि, भुनेश्वर - चासी मुलिया आदिवासी संघnoreply@blogger.com